singhbhum ke khuntkatti
🔹 परिचय
सिंहभूम (मुख्यतः पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम) झारखंड का एक ज़िला है जो खनिज संसाधनों, विशेषकर लोहा, तांबा, मैंगनीज और बॉक्साइट के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यहाँ भारत की कुछ सबसे बड़ी खनन कंपनियाँ — जैसे टाटा स्टील, हिंडाल्को, SAIL आदि — दशकों से खनन कर रही हैं।
इसके बावजूद, इस क्षेत्र के आदिवासी समुदायों विशेषकर खुंटकट्टी रैयत वंशजों को उनकी मूलभूत ज़रूरतों – शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार – से वंचित रखा गया है।
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🔹 खुंटकट्टी रैयत कौन हैं?
“खुंटकट्टी” शब्द का अर्थ होता है – “जिन्होंने पहली बार जंगल काटकर खेती लायक ज़मीन बनाई।”
ये झारखंड के आदिवासी समुदायों के वे पूर्वज हैं जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भी पहले जंगलों में बसकर खेती की, और ज़मीन पर पारंपरिक अधिकार स्थापित किए।
ब्रिटिश काल में भी इन्हें ‘रैयत’ (कृषक/भूमिधारी) का दर्जा दिया गया।
स्वतंत्र भारत में Wilkinson rules भूमि सुधार और CNT एक्ट (Chotanagpur Tenancy Act) के तहत इनके अधिकार सुरक्षित माने गए।
फिर भी, आज उन्हीं के वंशज विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैं।
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विकास की असमानता: प्रमुख समस्याएँ
🔸 1. शिक्षा से वंचित
ग्रामीण इलाकों में विद्यालयों की भारी कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति और घटिया आधारभूत संरचना।
उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज बहुत दूर हैं या महंगे हैं।
डिजिटल शिक्षा व ऑनलाइन संसाधनों तक पहुँच नहीं।
झारखंड में गिरते शिक्षा स्तर के आंकड़े आदिवासी क्षेत्रों में सबसे खराब हैं।
🔸 2. स्वास्थ्य सेवाएँ बदहाल
आदिवासी गाँवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) या तो हैं ही नहीं, या बेहद खराब स्थिति में हैं।
डॉक्टरों की भारी कमी; दवाइयों और एम्बुलेंस सेवाओं की अनुपलब्धता।
गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की मृत्यु दर अधिक।
खनन प्रदूषण की वजह से श्वसन और त्वचा रोग, कैंसर आदि की संभावना बढ़ी है।
🔸 3. रोजगार का संकट
खनिज संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद स्थानीय युवाओं को खनन कंपनियों में रोजगार नहीं मिलता।
बाहर से आए श्रमिकों को ठेका देकर स्थानीय लोगों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।
खेती के लिए ज़मीन छिनी गई, लेकिन मुआवजा या पुनर्वास पर्याप्त नहीं हुआ।
स्वरोजगार के लिए ट्रेनिंग या फंडिंग की कोई ठोस व्यवस्था नहीं।
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विरोधाभास: समृद्ध ज़िला, गरीब लोग
विषय सच्चाई
खनिज उत्पादन देश के शीर्ष जिलों में से एक
राजस्व करोड़ों का टैक्स सरकार को
स्थानीय लाभ ना के बराबर
जीवन स्तर गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा
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कारण क्या हैं इस वंचना के?
1. राजनीतिक उपेक्षा – आदिवासी समाज की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया गया।
2. भ्रष्टाचार – विकास के लिए आने वाला बजट ज़मीन पर नहीं पहुँचता।
3. खनन कंपनियों की जिम्मेदारी का अभाव – CSR फंड ठीक से खर्च नहीं होता।
4. नीति और योजना में स्थानीय भागीदारी की कमी – योजनाएं ऊपर से थोपी जाती हैं, नीचे से राय नहीं ली जाती।
5. CNT/SPT कानूनों का उल्लंघन – भूमि अधिग्रहण में पारंपरिक अधिकारों की अनदेखी होती है।
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क्या होना चाहिए? – समाधान की दिशा में सुझाव
1. स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के आधार पर नौकरी मिले, खासकर खनन और संबंधित क्षेत्रों में।
2. प्राथमिक शिक्षा केंद्रों और स्वास्थ्य सेवाओं का व्यापक विस्तार हो।
3. CSR (Corporate Social Responsibility) फंड का पारदर्शी और स्थानीय जनसुनवाई के ज़रिए उपयोग हो।
4. आदिवासी स्वशासन व्यवस्था (5वीं अनुसूची, पेसा एक्ट) को सख्ती से लागू किया जाए।
5. खुंटकट्टी रैयतों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता और संरक्षण मिले।
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निष्कर्ष
सिंहभूम ज़िला देश को संसाधन देता है, पर स्वयं की जड़ें उपेक्षित हैं। खासकर खुंटकट्टी रैयतों के वंशज, जो इस धरती के मूल संरक्षक रहे हैं, वे आज हाशिए पर हैं। यह केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक और नैतिक अन्याय भी है। अब समय है कि राज्य और केंद्र सरकार, कंपनियाँ और समाज – मिलकर इस असमानता को दूर करें और आदिवासी समाज को उनका सम्मान और हक़ वापस दिलाएं।