~पहले हमारे पुरखे चन्डु: लेनेका के द्वारा सही तिथि निर्धारित करते थे।
उस समय की गणना थी तो सिर्फ चन्डु: लेनेका गोर्गोणिड् (ग्रह नक्षत्र) की।
जिसका उदाहरण स्वरुप आज भी बुजुर्गों से सुनने को मिलती हैं कि –
“नाअ् दो ओकोन चान्डु: सेसेन तना गा।
बनो ना: दो गा सरदि चन्डु: ।
नेन तयोम: दोगा मगे चन्डु: बेटाना।
सेनो: यन चन्डु: रेय: इन्दिरि: रेकिङ सेनलेना अटोवरि पा रेकिङ रुवा उरा लेना”
आज भी ये सारी बातें उनसे सुनने को मिलती हैं जो वारङ चिति लिपि के जानकार नहीं हैं।
अगर वारङ चिति लिपि के जानकार होकर ऐसी बातें करते तो मैं मान लेता कि ये जरूर लको बोदरा जी के रचित कैलेंडर के followers हैं।
पर नहीं चूंकि ये प्रकृति के followers हैं
और प्राचीन समय से गणना ऐसे ही होती आई है।
इसी प्रकृतिक गणना पद्धति को ओत् गुरू कोल लको बोदरा जी ने अपने आध्यात्मिक शक्ति के बल पर पुन: लिखित रूप दिया । और लिटा गोरगोणिड् की रचना की।
यहां ” लिटा गोर्गोणिड्” साधारणतः देखा जाए तो लिटा राजा के काल से होती आई गणना पद्धति को कहते हैं।
गोर्गोणिड् का अर्थ ग्रह नक्षत्र से है,
जिसका एक गीत आज भी सुनने को मिलती है।
—–” इपिल्ल कोदो इपिल्ल को ,
गोर्गोणिड् कोदो गोर्गोणिड् को
सुरु सुरु जोह जोह सकम रेको सृजोन लेना।”
ये गीत आज लुप्त होने के कागार पे है।
Note— ये सिर्फ एक गीत ही नहीं इसमें Scientific logic होने के साथ एक Mathematics formula भी है।
१…वैसे लिटा गोरगोणिड् का चक्र एक वर्ष में सूर्य के बढ़ते क्रम से शुरू होकर घटते क्रम पर समाप्त होती है। जो कि Naturalहै।
२…और महीनों की शुरुआत भी चन्द्रमा के बढ़ते क्रम (चन्द्र दर्शन) से शुरू होती है और घटते क्रम ( अमावसया ) पर समाप्त हो जाती हैं।
जो प्रकृतिक तालमेल से जुड़ी है।