Mando Sardar ki jivni
मान्डो सरदार बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे। झारखंड के समीप उड़ीसा राज्य के मानवीर गांव मान्डो सरदार के कारण प्रसिद्ध है। मान्डो के पिता माधो सरदार तथा माता अच्छी सरदार। माधो तथा अच्छी सरदार के तीन बेटों में मान्डो, मधो एवं लेबेया था। मान्डो सरदार का बीर बोल गांव के रायमुनी बिरूवा से प्रेम विवाह हुआ था। उनका इकलौता पुत्र बेरगा एवं बहु सोनामुनी से एक लड़का रघुनाथ तथा बेटियों में फूलमनी एवं रायमुनी। रायमुनी का जन्म 1942 में हुआ था जो कि अब तक जीवित है। 65 वर्ष होने के बावजूद स्वस्थ एवं तंदुरूस्त हैं। रायमुनी सिर्फ फल और दूध ही पीती हैं। फूलमनी की शादी हो गयी थी लेकिन रायमुनी अविवाहित है। बड़े बेटे रघुनाथ का मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान ही मृत्यु हो गयी।
मान्डो तीन भाईयों में सबसे ज्यादा खाना खाता था और काम में आलसी था। बहुत जिद्दी होने के कारण वह किसी का बात नहीं सुनता था। इसलिए पिताजी बहुत गाली एवं डांटते रहते थे। एक बार की बात है किशोर अवस्था में ही उसके पिता द्वारा गाली देने पर दुखी होकर मयूरभंज की ओर जंगल से होकर जाने लगा था कि जंगली बीहड़ संकट रास्ते में आदमी पूजा करने वाले पुजारियों ने मान्डो को मारने के लिए घेर लिया। मान्डो का शरीर 8 फीट ऊंचा एवं अधिक मोटा होने के कारण बहुत देर तक उन पुजारियों ने उनको देखा। पुजारियों द्वारा हथियार उठाने पर मान्डो ने झुककर पुजारी का पैर पकड़कर हाथ से हवा में पंखा की तरह घुमा कर जमीन पर रख दिया। यह देख सभी पुजारी अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए। 12 वर्ष की आयु में ही मान्डो को अपने शक्ति की अनुभूति हो गयी थी। यह खबर मयूरभंज के राजा को मालूम हुआ। राजा ने अपनी पुलिस को मान्डो के गांव भेज दिया। उस दिन संयोग से वे रास्ता किनारे ही बकरियाँ चरा रहे थे।
मान्डो सरदार रास्ता किनारे ही बड़ा सा इमली पेड़ के डाली को झुकाकर बकरियों को पत्ती खिला रहे थे। उसी समय पुलिस वालों ने मान्डों से पूछा कि मान्डो का घर किधर है हम लोगों को बता दो उनसे मिलना है। राजा ने हमें भेजा है। मान्डो ने जबाव दिया वह जो दिखाई दे रहा है वहीं पर मिलेगा। पुलिस ने कहा जाओ तुम्हीं बुला कर लाओ। मान्डो ने कहा ठीक है हम जायेंगे एक शर्त पर जब तक हम लौट नहीं आते तब तक इस इमली पेड़ की डाली को मेरी तरह झुकाकर रखना होगा ताकि बकरियों का पेट भर सके। पुलिस ने कहा ठीक है। डाली को पुलिस के हाथों जैसे ही पकड़वाये और अपने हाथ हटाये त्योंही सभी पुलिस वाले ऊपर पेड़ पर लटक गये। आधे पुलिस गिर भी गए। गुस्सा से पुलिस ने कहा यह ठीक नही, हम लोगों को नीचे उतारो। मान्डो ने ऊपर लटके पुलिस को उतारकर उपना असली परिचय दिया कि मैं ही मान्डो सरदार हूँ। पुलिस ने कहा कि राजा तुम्हें देखना चाहते हैं। इसलिए बुलाया है। मान्डो ने कहा ठीक है हम बाद में जायेंगे आप लोग जाते रहिए। मान्डो सरदार ने मयूरभंज राजा के महल में प्रवेश करते ही देखा कि अखड़ा में पहलवानी की प्रतियोगिता हो रही है। पैदल चलने के कारण पसीना से लथपथ है इसीलिए एक पहलवान साथी को लेकर नदी में नहाने के लिए चल दिये। मान्डो की आदत थी कि नहाने के लिए जाने पर एक मुट्ठी सरसों साथ में लेते जाते। उसके साथी पहले ही नहा चुके थे। मान्डो सरदार बाद में नहाये। नहाने के बाद एक मुट्टी सरसों के बीज को हाथ से दबाकर तेल निकाला और अपने शरीर में लगाया। यह देख साथी पहलवान आश्चर्यचकित व दंग रह गये। नहाने के बाद महल में प्रवेश किया ही था कि उसकी बारी आ गयी। जिस पहलवान से भिडंत था उसने अपना शरीर का पहलवानी दिखा-दिखा कर अखड़ा में प्रवेश किया। मान्डो बिना कुछ बोले प्रसन्नचित मुद्रा में ज्यों ही हाथ मिलाया दूसरे पहलवान के हाथ से खून निकलना शुरू हुआ। यह देखकर प्रतियोगिता शुरू होने से पहले ही दूसरे पहलवान हार मान गए। राजा ने यह देखकर ‘मान्डो बागे’ को मान्डो सरदार की उपाधि दी और राजा ने चेतावनी दिया कि आईन्दा तुम किसी से नहीं लड़ोगे। इस बात की खबर गांव वालों को नहीं थी। किसी के द्वारा गांव वालों को यह खबर मिली की मान्डो बहुत ताकतवर है। एक दिन गांव वालों ने शक्ति परीक्षण करने के लिए योजना बनायी। गांव वालों ने अपने-अपने भैंसे व गाड़ी के साथ मान्डो सरदार को भी जंगल से लकड़ी लाने के लिए बुलाया। जंगल पहुंचने पर सभी ने अपने-अपने बैलगाड़ी में लकड़ी लादना शुरू किया। योजना स्वरूप मान्डो के भैसों को जंगल से बाहर खेद दिया गया। सभी अपने-अपने बैलगाड़ी मे लकड़ी लाद-बांधकर भैसों को बांधना शुरू किया और मान्डो को कहा कि तुम्हारा भैंसा तो किधर भाग गया जाओ ढूँढ़कर लाओ। हम लोग तुम्हारा इन्तजार नहीं करेंगे। इसलिए हमलोग अपना गाड़ी लेकर जा रहे हैं, इतना कहकर वे चले गए। मांडो ने अपना दिमाग लगाया कि गांव वाले मेरी ताकत का परिचय लेना चाहते हैं। बैलगाड़ी में उन लोगों से भी अधिक लकड़ी लादा और पूरा जोर से बांध कर, दोनों भैंसा को खोजे बगैर ही अपने हाथ से गाड़ी को जंगल से खींचना शुरू किया। मान्डो रास्ता को छोड़कर उबड़-खाबड़ एवं खेतों के आड़ को पार करते हुए उन लोगों से पहले घर पहुँच गए। यह देखकर उनकी ताकत का परीक्षा लेने वाले शर्म से पानी-पानी हो गए।
मान्डो सरदार का जैसा ताकत था, भोजन की मात्रा भी वैसा ही था। मांडो के भोजन की मात्रा एक बार में 60 लोगों के खाना के बराबर था। गांव वालों ने उनके खाने का भी परीक्षा लिया। यह मौका भी किसी शादी के अवसर का था। शादी होने के बाद भोज खाने के लिए मांडो को बैठने के लिए कहा गया। मांडो ने कहा नहीं हम तो गांव के हैं, मेहमान व बन्धुओं को पहले खिलाओ। गांव वालों के बीच उसकी एक न चली और कहा गया कि आपको खिलाने के बाद ही मेहमान को खाना खिलाएंगे। मान्डो समझ गये कि शायद गांव वाले उनके खाने का भी परीक्षा लेना चाहते हैं। मान्डो हाथ धोकर खाना खाने बैठ गये। मांडो बारातियों का पूरा खाना भी खा गये। इस परीक्षा में भी गांव वालों का मुँह लटक कर रह गया।
मांडो की यह शक्ति ईश्वरीय वरदान व प्राकृतिक था। किसी जादू टोने का शक्ति नहीं था। मांडो के विषय में जितना कहा व लिखा लाए कम है क्योंकि मांडो आदिवासी हो जनजातियों के बीच में जबतक सूरज चांद रहेगा, राम लक्ष्मण की तरह उनकी शक्ति को याद किया जायेगा और उनकी शक्ति को पूजा जायेगा।
संदर्भ : पुत्री रायमुनी के अनुसार (लेखक-मदिराय गुन्दुवा)
स्रोत – सिंहभूम के शहीद लड़ाका हो