Biography of Sushila Samad
Biography of Sushila Samad of Ho Samaj सुशीला समाड पहचान का कोई मोहताज नहीं वरन् आदिवासी होने से उनकी युवा पीढ़ी को प्ररेणा देने वाली जीवन गुमनामी हो गई।न जाने कौन सी वजह थी कि महादेवी वर्मा जैसे साहित्यिक,कवयित्री के साथ मिलकर काम करने के बावजुद भी उनको साहित्यिक इतिहास में नाम दर्ज नहीं हो पाया।।
सुशीला समाड का जन्म 7 जुन 1906 ईं को झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र के लउजोडा़ गांव में हुआ जहां से चक्रधरपुर शहर निकट पड़ता है। उनके माता का नाम लालमनी साडिंल एवं उनके पिता का नाम मोहनराम साडिंल है। सुशीला समाड का 15 वर्ष कि आयु में ही उनकी शादी शिवचरण समाड़ से हुआ,जो एक मुंडा आदिवासी परिवार के थे।
1930 के दशक में जब हिंदी और आधुनिक हिंदी कविता अपने बचपन से ही वाकिफ थे। सिंहभूम क्षेत्र के एकलौते आदिवासी महिला थी जो कविताएं लिख रही थी।इस दौर में हिन्दी कविता के क्षेत्रों में गिनी चुनी कवयित्री थी। सुशीला समाड मात्र कविताएं नहीं बल्कि वे एक साहित्यिक सामाजिक पात्रिका “चांदनी” का संपादन प्रकाशन भी कर रही थी। सुशीला समाड ने अपने संक्षिप्त परिचय में अपने पहले काव्य संग्रह”प्रलाप ” में दिया है। उन्होंने लिखा है कि”पिछड़े हुए विहार -प्रान्त के सब से अधिक पिछड़े भाग छोटानागपुर के कोल्हान जैसे असभ्य और अन्धकारपूर्ण चाईबासा के निवासी हुं। पिताजी चाईबासा में एक प्रख्यात व्यक्ति थे। मैं उनके साथ पुत्रियों में से पांचवीं हुं। मेरी शिक्षा वाल्प काल में प्राइमरी स्कूल तक स्थानीय एस.पी.जी. मिशन स्कुल में हुई है। मैंने करीब 11 वर्ष कि अवस्था में स्कूल छोड़ा था।,,,,,,,,,,मेरा विवाह 15 वर्ष की अवस्था में हुआ। इस बीच अपने कृपालु बहनोई (देवेन्द्र नाथ समाड) कि प्ररेणा से घर में बराबर अध्यायन किया। विवाह के चार वर्ष बाद मेरी पुत्री उत्पन्न हुई। यहीं से मेरी ग्रहस्थ जीवन का शेष और सार्वजनिक जीवन का आरंभ होता है।””
सुशीला समाड के द्वारा कही गई बातें “मुझे अपने अध्ययन में किसी विद्वान अथवा अध्यापक से सहायता नहीं मिली, मैंने जो कुछ सीखा,एक मात्र अपने अधयायन के द्वारा ही सीखा है।”सुशीला समाड के द्वारा प्रकाशित प्रथम किताब “प्रलाप”(1935) के बाद दुसरी किताब “सपने का संसार”काव्य संग्रह है जो 1948 में छापा।इस तरह सुशीला समाड हिंदी की प्रथम आदिवासी महिला कवयित्री संपादक और स्वतंत्रता सेनानी है|
“राष्ट्रीय स्वतंस्त्रता आंदोलन”
जब गांधी का दौरा कोल्हान में हुआ तब सुशीला 18 वर्ष कि थी और गांधी के राष्ट्रीय आंदोलन और कोल्हान में चल रहे आदिवासी संघर्ष को लेकर संचित थी। सुशीला के परिवार भी आदिवासी आंदोलन और राजनीति में सक्रिय थी।
1930 में जब नमक कानुन तोड़ने के लिए दांडी मार्च शुरू हुआ तो अपने डेढ़ साल की बच्ची को अपनी मां के देख रेख में छोड़ वह गांधी के साथ हो गई। इसके बाद वह पुरे झारखंड के महिलाओं को संगठित करने लगी।