Singhbhum dhanee jila mein se ek hai
झारखंड राज्य के कोल्हान प्रमंडल का पश्चिमी सिंहभूम जिला, विशेष रूप से इसका मुख्यालय चाईबासा, न केवल प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, बल्कि यहाँ हो आदिवासी समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी गहराई से जुड़ी हुई है। यह धरती सदियों से लौह अयस्क (Iron Ore) की उत्पादक रही है। हमारे पूर्वजों ने इस धातु को अपने पारंपरिक हो भाषा में “जेंगा हासा” या “दीरी” के नाम से पुकारा है।
संसाधनों की समृद्धि सिंहभूम के किरीबुरू, मेघाहतुबुरू, गुवा, जमदा, मनोहरपुर, चिड़िया जैसे क्षेत्रों में लौह अयस्क का लगातार उत्पादन हो रहा है। यह अयस्क भारत के प्रमुख इस्पात संयंत्रों में भेजा जाता है:
@बोकारो स्टील प्लांट (SAIL)
@टाटा स्टील लिमिटेड (पूर्वी सिंहभूम)
@इलेक्ट्रो स्टील लिमिटेड
@रूंगटा स्टील (चाईबासा के कुजु नदी के किनारे)
@उषा मार्टिन लिमिटेड (अब टाटा स्टील लॉन्ग प्रोडक्ट्स)
यह स्पष्ट है कि कोल्हान की भूमि राष्ट्र के औद्योगिक विकास में रीढ़ की हड्डी की भूमिका निभा रही है।
लेकिन क्या इस विकास का लाभ समाज तक पहुँचा है?
जहाँ एक ओर कोल्हान की धरती भारत को इस्पात देने में अग्रणी है, वहीं दूसरी ओर यहाँ के आदिवासी समुदाय आज भी अंधकार में हैं।
आयरन ओर के अतिरिक्त यहाँ कायनाइट (लिप्साबुरु, सराईकिला), यूरेनियम (जादूगोड़ा), तांबा (मुसाबनी, घाटशिला) जैसे बहुमूल्य खनिजों का उत्पादन भी होता है।
परंतु इन खदानों के आसपास के गाँवों में विस्थापन, बेरोजगारी, भूख, और सामाजिक असंतुलन व्याप्त है।
कई परिवार लकड़ी, पत्ता, चिट्ठी, हड़िया बेचकर जीवनयापन करने को मजबूर हैं।
यही है विकास का पैमाना?
क्या यही हमारे समाज के लिए विकास है?
क्या यही कारण था कि हमारे पूर्वजों ने शहादत दी थी?
क्या हम अब भी बदलना नहीं चाहते?
अगर बदलाव चाहते हैं,
तो अब भी समय है…
समाज की वास्तविकता और चुनौती
आज हमारा समाज गलत दिशा में बढ़ रहा है।
हर दिन औसतन 500 लोग चक्रधरपुर स्टेशन से पलायन कर रहे हैं—गुजरात, महाराष्ट्र, बेंगलुरु जैसे राज्यों की ओर दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए।
हमारे समाज को क्या मजदूर पैदा करने वाली मशीन बना दिया गया है?
शोषण, बलात्कार, नशाखोरी, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी समस्याएँ हमारे समाज के मूल ढाँचे को खोखला कर रही हैं।
शिक्षा और नेतृत्व की भूमिका
जो लोग आज शिक्षित हैं, जो सरकारी और निजी संस्थानों में काम कर रहे हैं, क्या वे भूल गए कि यही समाज उन्हें उस मुकाम तक ले गया?
क्या आप नहीं चाहते कि हर बच्चे को शिक्षा मिले?
क्या आप नहीं चाहते कि हमारी माताएँ और बहनें सुरक्षित रहें?
क्या आप नहीं चाहते कि आपका समाज खुद के विकास की परिभाषा गढ़े?
समाधान: समाज की री-इंजीनियरिंग
समाज को बदलने के लिए हमें एक साझा मंच पर आना होगा:
ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान
युवाओं को नेतृत्व के लिए तैयार करना
महिलाओं को सुरक्षा और समानता देना
विस्थापितों को पुनर्वास और जीविका का अधिकार
पलायन की रोकथाम और स्थानीय रोजगार सृजन
पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति को संरक्षित करते हुए आधुनिक शिक्षा की ओर अग्रसर होना
आज समाज एक डूबती नाव के समान है। समय आ गया है कि हम सब मिलकर उसके META सेंटर को संतुलित करें। ताकि समाज की दिशा और दशा दोनों बदले।
निष्कर्ष: क्या आप तैयार हैं?
अपने आप से पूछिए:
क्या आप बदलाव लाने को तैयार हैं?
क्या आप समाज की समस्याओं को सिरे से समझते हैं?
क्या आप नेतृत्व के लिए खड़े होंगे?
अगर हाँ,
तो आइए…
एक मंच पर जुड़िए।
अपने समाज को एक नई दिशा दें।
क्योंकि परिवर्तन भीतर से शुरू होता है, और शायद… वो आप ही हैं… जो इस परिवर्तन की चिंगारी बन सकते हैं।