Departmental Examination of Gazetted Officers Rules1961
यह दस्तावेज़ भारत सरकार के “Departmental Examination of Gazetted Officers Rules, 1961” के अंतर्गत आने वाले Appendix III का हिस्सा है, जिसमें “Study of Tribal Languages” विषय पर जानकारी दी गई है। इस भाग में अधिकारियों के लिए आदिवासी भाषाओं की अनिवार्य परीक्षा (Compulsory Examination in tribal languages) से संबंधित नियमों को स्पष्ट किया गया है।
मुख्य बिंदु:
1. अनिवार्य परीक्षा और जिलों के अनुसार भाषाएँ:
नियम के अनुसार, यदि कोई अधिकारी नीचे दिए गए जिलों में नियुक्त किया गया है, तो उसे उस जिले में बताई गई जनजातीय भाषा की परीक्षा अनिवार्य रूप से पास करनी होगी:
1. Hazaribagh – संथाली
2. Ranchi – मुंडारी
3. Palamau – उरांव
4. Singhbhum – हो
5. Santhal Parganas – संथाली
6. Dhanbad (केवल Chas और Chandan Kiari पुलिस थाना, बाघमारा अनुमंडल) – संथाली
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2. परीक्षा में क्या-क्या करना होगा:
परीक्षार्थी को निम्नलिखित योग्यताएँ सिद्ध करनी होंगी:
(a) जनजातीय लोगों से बातचीत करने में सक्षम हो ताकि वे उसे समझ सकें और वह उन्हें समझा सके।
(b) जनजातीय भाषा में बोले गए वाक्यों को लिखे और उन्हें हिंदी या अंग्रेजी में सही ढंग से समझाए।
(c) हिंदी/अंग्रेजी वाक्यों का अनुवाद जनजातीय भाषा में करे — अनुवाद इतना सटीक हो कि जनजातीय लोग उसे आसानी से समझ सकें।
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3. पास होने के मानक:
(a) न्यूनतम मानक (Lower Standard):
हर भाग में कम से कम 50% अंक
कुल मिलाकर 66% अंकों के साथ पास
(b) उच्च मानक (Higher Standard):
हर भाग में 60% अंक
कुल 75% अंकों के साथ पास
यह उच्च मानक वैकल्पिक है। जो अधिकारी उच्च मानक से पास हो, वह दोबारा परीक्षा दिए बिना भी मान्य होगा।
4. 15 वर्षों की सेवा के बाद विशेष छूट:
अगर किसी अधिकारी ने 15 वर्ष या उससे अधिक की सेवा पूरी कर ली है, तो उसकी परीक्षा केवल मौखिक (oral test) होगी। इस परीक्षण में उसे जनजातीय लोगों से स्वाभाविक रूप से बातचीत करने की योग्यता दिखानी होगी। इस परीक्षण में 50% अंक मिलने पर पास माना जाएगा।
5. एक जिले में परीक्षा पास कर लेने के बाद दूसरी पोस्टिंग पर छूट:
अगर कोई अधिकारी किसी जिले में संबंधित जनजातीय भाषा की परीक्षा पास कर लेता है और फिर उसे किसी अन्य जिले में पोस्ट किया जाता है (जहाँ दूसरी जनजातीय भाषा की आवश्यकता होती है), तो उसे दोबारा परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं होगी।
यह नियम मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं कि जिन अधिकारियों की पोस्टिंग झारखंड जैसे राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में होती है, उन्हें स्थानीय जनजातीय भाषाओं की समझ हो ताकि वे वहाँ के निवासियों से बेहतर संवाद स्थापित कर सकें।