Bah Porob kee rochak jankariyan
Ho samaj Bah porob kee rochak jankariyan-अब देख चुके हैं कि भवशक्ति अपने चार सन्तानों या विभागों में बाँटा गया। लेकिन यह देख लिए है कि पूजा सिर्फ तीन पुत्रों का हुआ, अब रहा पुत्री का भाग। इसी बीच लुकु दम्पति इलि के नशे मे अपने को भी भूल सा गये हैं। भवशक्ति ने अपने कर्त्तव्य समझा, इधर लुकु-कुढ़ी गर्भावस्था में आ गई
परिस्थिति ने पलट खाई। सारे जीव जन्तु बिगड़ खड़े हुए, आखिर लुकु कुढ़ी को तंग करने लगे। लुकु कोड़ा नशे में चूर था। लुकु कुड़ी बिगड़ी और पीठ पर एक लात मार दी जिसका एक गीत प्रचलित है- बाह :-
तेगाञ तेगाञ दोम दोया दबी रे कुलसु कुलसुञ दोम लिपेर कुड़ाम रे
लुकु कोड़ा चौंक उठा; उसने लुकु कुड़ी को छाती पर चपड़ की बात कही। लुकु कुड़ी अपने पति को युद्ध में भेजने के पहले चपड़ (फुल माला) देने के लिए रंग बिरंगे किस्म के फूल लायी, पहुँचते-पहुँचते सब सूख जाता था। आखिर तबाह होकर रोने लगी। मौका पाकर मिरू रूप में जैरा उस से आ मिली। उसने उसको एक सखुआ फूल बताई। लुकु कुड़ी उस फूल का माला बनाई और पति को जंगल में भेजी। जिसका गीत प्रसिद्ध है -बाह गीत
सरजोमबाह मुली कोतो रे मिरू गोम लेयोन केन नोते वादी लतार रे कारे गोम जोगोन केना सरजोम वाह नोचा जना जु मिरू सेनोः वेन नोते वादी दोड़ जना जु करे विराड में।।
इस तरह पूजा पाठ कर लुकु कोडा युद्ध में चला गया। उसने शत्रु को दमन किया। इससे साफ मालुम पडता है कि यह आवश्यक लड़ाई का पूजा है क्योंकि इसका ताल और स्वर से भी पता चलता है। ये दस ताल है- गेना, जदुर, केम्टा, शार, बाह, रचा, जपे, चंगुड़िया, दाँवड़िया, गाडुवा है। यह कार्य लुकु कोड़ा युद्ध में सेंदरा पूर्णिमा को कामयाब हुआ, इसीलिए यादगार में “सेंदरा पूर्णिमा को ही बाह पर्व” मनाया जाता है इसलिए “हो भाई बहनें याद रखें सेंदरा पूर्णिमा ही बाह त्योहार संस्कृति का असली आदर्श माना गया है।