Her mut chi her karsa
जब भगवान देता है तो छप्पर फाड के देता है और जब लेता है तो कपाल फाड़ कर लेता है। कालक्रम के तीन संतान हुए। बिरबेन्डरकर, तयषुम और बेड़ा कडिया। अब भगवान की इच्छा हुई कि इन्हें और भी ज्ञान दिया जाए। उसने उन तीनों को अलग अलग भार सौंपा। अब देखा कि रहने का उषम और कन्द मूल फूल फल अर्थात प्रकृति आहार के साथ कृत्रिम भी सिखाया जाए। उसने बपने देशाउली विभाग से एक सुअर का रूप धारण किया और उन से आ मिला। वह उन तीनों के सामने जमीन की मिट्टी खोदने लगा। जब उन लोगो से बातचीत हुई तो सुअर कहा कि मुझे भक्षण करो तुम्हे ज्ञान आयेगी। उन लोगों ने आराधना की और खा लिया।
उसी दिन से घखर और हल बनाना सीख गये यह काम बापल प्रतिपदा (मुलुः) को हुआ था। इसके नीचे संस्कृति वाक्य से पता लगेगा।
“एना तुम्वा रेया तुई रेया कोदे सहरा बबा सहरा दिउ गई दिउ हाड़ा दिउ केड़ा ते सी चटाः माअः चटाः एना हेर ता रे विड् तारे एना मःनम चलुउ नम एना आदे गाँ लेगा रसूई हेलता लेका एना लुटि सिंह लेका बारू सिंह लेका गुरोः चः लटुमोंः चः एना अताल पताल लेका इचाःबुटा चिल्गु लेका एना हेले- हेले बाह गुले गुले बाह लेका मेना कजि मेना कता ओं जो हरम तिञ दोहम बपल मूलु (प्रतिपदा) को हेर मुट मनाया जाता है। संस्कृति के आधार पर किसान भाईयों वो आदि मानव कहलाए जाने वाले खेतिहरों के लिए बिहन बीज बोने को असली मूल त्योहार कहलाया जाता है तथा दोष रहित ख्याति है।