1. सृष्टि के अनुकुल यौगिक काल के पहले विवाह होना सभ्यता और प्रकृति के विरूद्ध है।
2. बाल विवाह प्रकृति से दुश्मनाई का लक्षण है।
3. सगुन-अपसगुन को सावधान और शुद्ध के परख के बाद ही शादी का व्योरा होना होशियारी का काम है।
4. शादी का काल, वक्त, तिथि अथवा मुहुर्त ज्ञान वो निर्धारण जानकारी ज्योतिष अथवा ज्योतिषी से संबंधित अनिवार्य है।
5. विवाह सम्पन्न यथासम्भव मोंडो (समाज सदन) बोंगा आँणादी (दव विवाह) से होना समाज संस्कृति को सुदृढ़ बनाता है। কি
6. विवाह ज्योतिषी के संकेतिक उचितावस्था ग्राम, अखाड़ा अथवा समाजिक कमिटि के निर्धारित कोई भी स्थान पर कार्यरूपेण किया जा सकता है।
7. एंगा-बागे व अजीहनर लिजः (माँ का विछोह व जेट साली सम्मान) का दुरूपयोग शुद्धता से शादी सम्पन्न के बादपंच मध्य से लेना-देना सभ्यता का परिपक्व है। 8. जोम मांडी (रिस्तेदारों के घर-घर जाकर वधु का पैसा मांगना) सच्चरित्रता के विरूद्ध तथा सतीत्व और पतिव्रताधर्म का कलंक नमुना है।
9. विवाह सम्पन्न के सातवें दिन पूर्व से दुल्हा-दुल्हिन का बाहर आवगमन संस्कृति के विरूद्ध है। बल्कि, उसी दिन से अपने-अपने घरों में सुनुम ओजोः (तेल मखाई) गौड़िन से ही धर्म-संस्कृति
के गौरब की पुष्टि होती है। ओर एरा (वर की ओर से बारात लाने भेजे जाने वाले व्यक्ति) सप्तऋषि-सम्पर्क पर छत्र छाया सा होना शुद्धता है। 10
11. धार्मिक भजन-गान तथा शांति व सभ्यता के कर्मों के साथ वधु विदाई होना अनिवार्य है।
12. गोःआदेर (बारात के पहलेजाने वाली कन्या की ओर की व्यक्ति) सप्तऋषि सम्पर्क पर ही बारात के जिम्मेवारी समझने की क्षमता रखना उचित है।
13. साखीसुतम (गवाही सुत) का बांधना साधरणताः गाँव के किनारे आम वृक्ष पर ही होना यथासम्भव योग्य माना जावे।
14. राजाबजाणा व रोड़ोसिंगा (सृष्टि को हिदायत देनेवाली वाजा गाजा) का कार्यान्वित अत्यन्त आवश्यकता मानी जानी चाहिए।
15. ग्राम व वस्ती के छोर या सीमाने से ही नरियल दाल, गाजा-वाजा और कला के साथ दारोम दअः युक्त दुल्हा अथवा दुल्हिन का स्वागत करना कार्य निपुणता का लक्षण है।
16. मनोविनोद अथवा भोज की व्यवस्था पंच को अपनी सभ्यता का सुन्दर रूप माना जाता है। 17. सिद्दि ज्योतिष की ज्योतिषी से संबंध वक्त, काल और मुहुर्त पर पुजारी के आशीष छाया में दुल्हा-दुल्हिन का सिन्दुर दान, कइ, चुड़ी, जनेऊ तथा वर-वधु का पणिग्रहण शुभ और चिरंजिवी, का फल-फूल योग है।
18. बहुरूपीय जोड़ीयों के एक लग्र शादी पर पुजारी के अलावे सभी को उपवास धार्मिक भजन-गान के साथ कार्य का सम्पन्न वैदिक सम्पति व सन्तति वर्धक है।
19. शादी समाप्त होने के उपरांत उपहार का लेन-देन कमिटि के सहयोग पर उचित सभ्यता रूपेण है।
20. नयी वधु के परिचय को सुदृढ़ रखने के वास्ते जोम-इसिन (नयी वधु के हाथ का खाना) विशेष विशिष्टता की प्राप्ति है।
21. वर-वधु के घर में सप्ताह बाद और बाहरी स्थान में तीन दिनों के बाद जम्डारपुड् (व्याह वेदी मंडप) व विसर्जन शुभ फल का प्राप्ति है।
22. इस विसर्जन के पूर्व बांदा पाड़ा (सुहागरात) कार्य धर्म वो संस्कृति नाशक माना गया है।
23. शादी के ग्यारहवें दिन के पश्चात् ही कुलगिया (दम्पति) कौटुम्बिक चहल-पहल की शोभा पाने के समर्थ समझें जाऐंगे।
-: सेल्ल आँणादि (अंतर जातीय विवाह) :-
1. सामयिक वातावरण पर शादी का प्रथम स्थान आदि समाज ही को प्राप्त होना उचित और सर्वाधिकार माना जाएगा।
2. सामाजिक वातावरण की जागृति बिना अंतर सामाजिक बिना सिर्फ अनुपलब्ध ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय ख्यति पर भी कलंकित होती है।
3. सामयिक तथा सामाजिक प्रगति ही अंतरजातीय अथवा सामाजिक विवाह का लक्षण है।
4. वर्तमान आदि संस्कृति के लक्ष्य पर ही शादी का परिपक्व सम्भव और शुद्ध मालुम पड़ता है।
5. भिन्नता को समान स्तर पर लाने के लिए विषयी नियमावली के आधार पर सामाजिक कमिटि पर निर्भर करती है।
6. सकाड़ी ऑणादी (कलुषित शादी) सिर्फ अंतरजातीय विवाह का योग ही नहीं बल्कि चरित्रहीनता का द्योतक है।
7. धर्म और संस्कृति के महात्म्य की रक्षा के लिए अंतरजातीय नारी वर्ग पर ही विवाह लागु हो सकता है।
सौजन्य से – कोल रुल