Karam Porob ka mahatva
Kol Ho samaj Karam Porob ka mahatva लुकु दम्पति के नाती नतीनी क्रमशः दुरमी के 13 थे और सुरमी के 12 पुत्र-पुत्री थी; सयाना हो गये बुद्धिज्ञान अपना अपना हासिल कर गये। यह देख कर दुरमी ने सोचा कि शासन सत्ता का बागडोर किन को दिया जाए, दुनिया को सम्भाल सके ऐसी परिस्थिति में सभी पुत्रों को बुलाया और तुई तुम्वा की ओर इशारा की कि एक एक बीज चुन कर बुलुड़ बाँदेला से पानी लाने को कहा था। यह सुन कर बागिया पहले अड्डा जमाया और जैसे पहुँचते ही किनारे से पानी के अन्दर जब्द कर ओल के पौधा में बाँद रखा। सभी को नजर बन्द रखा तथा सभी कोई तवाह हो गये। लेकिन लिटा इस कार्य में कामयाबी हासिल किया। उरद बीज चुन कर लिटा पानी लाने पहुँचा किस्म किस्म के षड्यंत्र बागिया ने रचा लेकिन हार मानना पड़ा उरद बीज को लिटा करमा पत्ती में बालु चुनकर अंकुर किया। यह देखकर बागियाने तीर धनुष धरणा देते हुए शपथ दिलाए कि तुम्हारा यह जन्मसिद्धि हथियार है और भविष्य में वंशज तक मौजूद रहेगा तथा शासन सत्ता का बागडोर सम्भले, जल पवन अग्नि एवं स्वर्ग मंच पताल तथा जीव जन्तुओं पर शासन चलाने की आज्ञा दी। लिटा राजा बने। इस कार्य पर दुरमी भी आशीष के साथ शासन पद सुपुर्द किया।
लिटा ने यह कार्य जोनोम पूर्णिमा को सफलता; प्राप्त की; इसी यादगार में करमा त्योहार जोनोम पूर्णिमा को मनाया जाता है। हो जन जातियों के त्योहारों में उरद ही का व्यवहार इष्ट देवों के लिए विशेष पूजनीय सामग्री रूप में इसीलिए प्रचलित है। दूसरे दालों का प्रयोग नहीं किया जाता है। अर्थात त्योहारों में इष्ट देवों को उरद दाल ही चढ़ाने की परम्परा से संस्कृति के आधार पर श्रेष्ठ माना गया अन्यथा दूसरे दालों का व्यवहार वर्जित है। तात्पर्य हर दृष्टि कोण से त्योहारों में उरद ही विशेष रूप से सर्व श्रेष्ट माना गया है।