pehle nirvachit Aadivasi janpratinidhi the Dulu Manki
पहले निर्वाचित आदिवासी जनप्रतिनिधि थे दुलू:-आदिवासियों में साहस और क्षमता की कमी नहीं ।
भारत में सन् 1921 में जब पहली बार संसदीय प्रणाली की शुरुआत हुई थी, तब “हो” समुदाय से आने वाले चाईबासा दुंबीसाई के लखराज दुलु मानकी ने अनारक्षित सीट चाईबासा से गवर्नस लेजिस्लेटिव काउंसिल मेंबर (बिहार -उड़ीसा) के सदस्य निर्वाचित होकर देश में पहले निर्वाचित आदिवासी जनप्रतिनिधि का गौरव प्राप्त करते हुए इतिहास रचा था ।
दुलु मानकी का चुनाव लड़ना और जीतना आदिवासी समाज के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि थी ।
1921 में चाईबासा से गवर्नर्स लेजिस्लेटिव काउंसिल मेंबर के सदस्य बने थे
फ्लैश बैक प्रवीण मुंडा, रांची
झारखंड के पहले निर्वाचित आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलू मानकी थे, वह 1921 में चाईबासा से गवर्नर्स लेजिस्लेटिव काउंसिल मेंबर (विहार-ओडिशा) के सदस्य बने थे. चाईबासा तब अनारक्षिन सीट थी. इस तरह दुलु मामकी ने पहली बार एक आदिवासी जनप्रतिनिधि
के रूप में निर्वाचित होकर इतिहास रच दिया था. 1921 से पूर्व देश में गैर-आदिवासी समाज राजतंत्र और पंच व्यवस्था के तहत संचालित और शासित होता था. आदिवासी समुदाय मुंडा, मानकी, पड़शा जैसे स्वशासन में संचालित था. जब प्रशासनिक सुधारों के तहत अंग्रेजों ने शासन के लिए गवर्नर्स लेजिस्लेटिव काउंसिल की प्रणाली लागू की, तो 1921 में भारतीयों को इसके तहत चुनाबी व्यवस्था में शामिल होने और प्रशासन में सहभागी होने का मौका मिला,
दुलू मानकी का चुनाव लड़ना ऐतिहासिक उपलब्धि थी
उस समय चुनाव में समाज के कुलीन और रईस लोगों को ही शामिल होने का मौका मिलता था. ऐसे में दुलू मानकी का चुनाव लड़ना और जीतना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन ऐसा नहीं था कि 1921 में दुलू मानकी अकेले आदिवासी थे, जो जनप्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित हुए थे. नार्थ ईस्ट से शिलांग (मेघालय) के रेव्ह जेजेएम निकोलस रॉय भी अपने क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे, रेव्ह निकोलस रॉय ईसाई थे, ज्यादा शिक्षित थे और उन्हें चर्च का समर्थन प्राप्त था. जबकि दुलू मानकी के बारे में कहा जाता है कि वह तीसरी कक्षा तक ही पढ़े थे. छोटानागपुर मैं उस समय बहुत कम लोग ही पढ़े-लिखे थे. इसके अलावा निर्वाचन प्रणाली से भी लोग पहली बार ही परिचित हो रहे थे.. दुलू मानकी ने अपने दौर में आदिवासी समुदाय के मुद्दे उठाये व आवाज बने
हो समुदाय से थे दुलू मानकी
दुलू मानकी हो समुदाय से थे और वह चाईबासा के दुबीसाई गाव के निवासी थे. दुलू मानकी और निकोलस रॉय, दोनों को ही भारत के पहले निर्वाचित आदिवासी जनप्रतिनिधि में शुमार किया जा सकता है. लेखक अश्विनी पंकज कहते हैं-1921 के गवर्नर्स लेजिस्लेटिव काउंसिल की लिस्ट में दुली मानकी और निकोलस रॉय का नाम देखा जा सकता है. दूसरी ओर मुख्यधारा के इतिहास में उनका कहीं जिक्र नहीं है. यह दिखाता है कि किस तरह से आदिवासियों की उपलब्धियों को खारिज करने की कोशिश की जाती है,
आदिवासियों में क्षमता की कमी नहीं
प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की वदना टेटे ने कहा कि आग से सौ साल पहले जब संसदीय निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हो रही थी, उस दौर में कई कठिनाइयों के बाद भी दूल मानकी ने एक सामान्या सीट से जीत हासिल की, उन्होंने साबित कर दिया कि आदिवासियों को मौका मिले तो यह कुछ भी कर सकते हैं. उनकी क्षमताएं किसी से कम नहीं है. वंदना कहती है कि दुलू ने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि अपने लोगों के मुद्दे उठाये और उनकी आवाज बने, आग हमारे लोगों को भी बिना हिचक और डर के आदिवासी समुदाय के लिए काम करना चाहिए.