Singhbhum ke jadugoda yooreniyam kee dharatee
🔹 परिचय
जादुगोड़ा, पूर्वी सिंहभूम ज़िले का एक छोटा सा आदिवासी बहुल इलाका है, जहाँ भारत की पहली और सबसे पुरानी यूरेनियम खान स्थित है।
यह खनन कार्य यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) द्वारा किया जाता है, जो भारत सरकार की एक कंपनी है।
यहाँ से निकाला गया यूरेनियम भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
लेकिन इस राष्ट्रीय महत्व की परियोजना के “प्रभावित क्षेत्र” के स्थानीय लोगों की स्थिति चौंकाने वाली और दुखद है।
☢️ प्रभावित क्षेत्र के लोगों की वर्तमान स्थिति
🔸 1. स्वास्थ्य पर गंभीर असर
समस्या विवरण
🧬 आनुवांशिक बीमारियाँ बच्चों में जन्मजात विकृति (जैसे हाथ-पैर न होना, आंखें ना होना), बौद्धिक अक्षमता
🧫 कैंसर और ट्यूमर रक्त कैंसर, त्वचा और आंतों के कैंसर के मामले अधिक
🤰 महिलाओं की स्थिति गर्भपात, बांझपन, समय पूर्व प्रसव और मृत बच्चों का जन्म
👶 बच्चों की मौत शिशु मृत्यु दर बहुत अधिक, 1 साल से कम उम्र में कई मौतें
😷 अन्य रोग त्वचा रोग, सांस की बीमारी, कमजोरी, थकावट, रेडिएशन बर्न
रेडिएशन का प्रभाव अक्सर धीरे-धीरे होता है, लेकिन इसके परिणाम पीढ़ियों तक चलते हैं।
🔸 2. पर्यावरणीय विनाश
रेडियोएक्टिव कचरे का निष्कासन (Tailings) खुले में होता है, जिससे मिट्टी, पानी और हवा दूषित हो जाती है।
कचरा डंपिंग क्षेत्रों में कोई मजबूत सुरक्षा दीवार या वैज्ञानिक प्रबंधन नहीं।
नदियाँ और भूमिगत जल स्रोत रेडिएशन से प्रभावित हो चुके हैं, जिससे खेती और पीने का पानी ज़हरीला हो चुका है।
🔸 3. रोजगार की विडंबना
यूरेनियम खनन से जुड़ी कंपनियाँ अधिकतर बाहरी कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं।
स्थानीय लोगों को केवल कुंठित मज़दूरी या अस्थायी नौकरियाँ दी जाती हैं।
प्रशिक्षण, सुरक्षा उपकरण या स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएँ बहुत सीमित हैं।
🔸 4. पुनर्वास और मुआवज़ा: केवल कागज़ों पर
जिन गाँवों को परियोजना के लिए विस्थापित किया गया, उन्हें ठीक से पुनर्वास नहीं दिया गया।
मुआवज़ा या तो नहीं मिला, या बहुत कम मिला।
विस्थापितों को स्थायी आवास, स्कूल, अस्पताल और बिजली-पानी की सुविधाएँ तक नहीं मिलीं।
🔍 कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
बिंदु विवरण
संचालन कंपनी यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL)
आरंभ 1967 में यूरेनियम खनन शुरू हुआ
प्रभावित गाँव जादुगोड़ा, भांगर, छातीन, तुरमडीह, नरवापहाड़, भालगुड़ा आदि
प्रमुख जनजातियाँ हो, संथाल, मुंडा, बिऱहोर
📢 स्थानीय आंदोलन और विरोध
“झारखंडी संगठन”, झारखंड मुक्ति मोर्चा, Jharkhandi Organisation Against Radiation (JOAR) जैसे कई संगठनों ने रेडिएशन और विस्थापन के खिलाफ आवाज उठाई है।
1990 के बाद कई रिपोर्टें (जैसे पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, इंटरनेशनल डॉक्टर्स फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर) ने स्थिति की आलोचना की।
मीडिया और डॉक्यूमेंट्री जैसे:
“Buddha Weeps in Jadugoda” (फिल्म निर्देशक श्रीकुमार)
“Tailing Pond”, “Toxic Neglect” – ने वैश्विक स्तर पर ध्यान खींचा।
✅ क्या किया जाना चाहिए? – सुझाव
1. रेडिएशन प्रभावित क्षेत्रों की वैज्ञानिक जांच और साफ़-साफ़ रिपोर्टिंग।
2. स्थानीय निवासियों की नियमित स्वास्थ्य जांच और मुफ्त इलाज।
3. खुले टेलिंग पोंड को बंद करना और कचरे का सुरक्षित निष्कासन।
4. स्थायी रोजगार और सुरक्षित कामकाजी माहौल।
5. मूलवासियों को परियोजनाओं में भागीदार बनाना, न कि सिर्फ दर्शक।
6. शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम ताकि लोग अपनी हक़ की माँग कर सकें।
📌 निष्कर्ष
जादुगोड़ा भारत के परमाणु शक्ति का केंद्र तो है, लेकिन वहाँ रहने वाले लोग “परमाणु छाया” में जी रहे हैं।
संपत्ति राष्ट्र की हो सकती है, पर उसके खतरों का बोझ सिर्फ स्थानीय समाज क्यों उठाए?
आज ज़रूरत है एक न्यायपूर्ण और मानवता आधारित नीति की, जो विकास के साथ-साथ जीवन की भी रक्षा करे।