एक गुमनाम महान नायक #सोबोन पिंगुआ जिन्हें अंग्रेजों की संधि को मानने से इंकार किया था,
१. हर एक जोड़ा बैल पर (आंर पञ्चा) 50 पैसे की लगान राशि अंग्रेज सरकार को दी जाए।
२. सिंहभूम में हो के स्थान पर उड़िया, हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई होगी।
३. कोल्हान में ग़ैर आदिवासियों को रहने दिया जाए।
इत्यादि
अंग्रेजों की इसी संधि से नाखुश होकर उन्होंने लालगढ़,आंवला,बड़पीड़ एवं बनतरिया पीड़ के लोगों को खबरदार किया था।
जिसकी भनक मेजर रफसेज को मिली और उन्होंने सोबोन पिंगुआ उर्फ सोबोन सोरदार को पकड़वाकर ढेंकी से कूट कूट कर चूड़ा बनवा दिया था।
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#सोबोन सोरदार (पिंगुआ) कुन्डियाधर गांव के रहने वाले थे।
सूत्रों के मुताबिक वे #जोगोना गोन्डाइ (पिंगुआ) के वंशज थे।
उनके पूर्वज कुन्डियाधर, भोन्डा, तिलै पी और नारंगा में रहते थे।
सोबोन पिंगुआ क्षेत्रीय सोरदार हुआ करते थे।
वे काफी शक्तिशाली एवं भरोसेमंद व्यक्ति थे। इन्हीं वजह से लोग उनका काफी मान-सम्मान करते थे।
यह ऐतिहासिक घटना उस समय की गौरवशाली गाथाओं को याद दिला देती है। जिस समय सिंहभूम घने जंगलों को हो (होड़ो) लोगों ने रहने लायक बनाया।
घने जंगलों को रहने एवं कृषि लायक बनाने में न जाने कितने पुरखों को जंगली – जानवरों का शिकार बनना पड़ा। कितने सांप-बिच्छू कीड़े मकोड़ों की चपेट में आकर काल के गाल में समा गए।
वर्ष 1765ई.तक के आसपास झारखंड के सिंहभूम में मात्र कोल जाति के लोग ही निवास करते थे। उनमें “हो दिसुम” का सम्राज्य स्थापित था।
हो लोगों में राजा और प्रजा का सभ्य शान्तिप्रिय सम्राज्य था।
उस समय पोड़ाहाट का दिकु राजा हो लोगों को खुशी-खुशी जीवन बसर करते देख ईर्ष्या से पगला गया।
उन्होंने कइ बार हो’ लोगों को तोड़ने की कोशिश की पर हो’ जाति के लोगों की जंगल-जमीन, रीति-रिवाज और संस्कार (दुपुब दोस्तुर) के सामने राजा का दाल नहीं गलता था।
अन्ततः पोड़ाहाट और सरायकेला-खरसावां के छिट-पुट राजाओं ने मिलकर अंग्रेजों को मदद के लिए आमंत्रण किया।
20फरवरी 1820 को मेजर रफसेज का सरायकेला आगमन हुआ।
सरायकेला और खरसावां के राजाओं ने इकरारनामा पर हस्ताक्षर किए।
इन लोगों के क्षेत्र से अधिकार अंग्रेजों के हाथों में चला गया।इसके बाद मार काट करते हुए
मेजर रफसेज 22से24 फरवरी तक राजाबासा गांव में बस गए।
इस गांव में इसी बीच बैठकी बुलाई गई मानकी-मुन्डाओं न्यौता दिया गया और पांच सूत्री संधि (नियम)रखा गया।
इन पांच नियमों का प्रचार प्रसार करते करते मुंडा-मानकियों को स्वीकार कराते हुए 25 मार्च को 1820 को गुमड़ा पीड़ प्रवेश कर गए।इसके बाद बड़ पीड़ जैतगढ़ पहुंच गए फिर बड़ पीड़ के जमींदार रघुनाथ बिस्सी के यहां पहुंचे।
अब तक अंग्रेजों ने काफी अशांति मचा दी थी।
उस समय सोबोन पिंगुआ , सोरदार हुआ करते थे ।
मेजर रफसेज के इशारे पर पोड़ाहाट राजा एवं रघुनाथ बिस्सी लोगों से लगान वसूलने एवं बदसलूकी करने लगे।
बड़ पीड़ के लोग खुशी खुशी जीवन निर्वाह कर रहे थे , उनकी खुशी छिन जाने को सोबोन सोरदार बर्दाश्त नहीं कर पाए।
उसने आंवला, लालगढ़ ,बड़पीड़ एवं बनतरिया पीड़ के लोगों को खबरदार किया कि पोड़ाहाट राजा,मेजर रफसेज और रघुनाथ बिस्सी के द्वारा थोपे गए नियम से हमारा हक छीना गया है। अब यह आग चारों दिशाओं में फैलती जा रही थी कि इन पांच नियमों को कोई नहीं मानेगा।
इस आग की खबर मेजर रफसेज तक पहुंच गई और उन्होंने रघुनाथ बिस्सी को आदेश दिया कि सोबोन सोरदार को पकड़कर या ठगकर संबलपुर लाया जाए।
मेजर रफसेज के आदेशानुसार उन्हें सम्बलपुर लाया गया ,और उन्हें ढेरों लोगों ने पकड़ कर ढेंकी से कूट-कूट कर उनका कचूमर 🩸🦴 निकाल दिया।
🪃है न मजेदार कहानी
अब आग तो अंग्रेजों और रघुनाथ बिस्सी ने सुलगाई थी।
सोबोन सोरदार के मारे जाने की खबर जंगली आग 🔥🔥🔥
की तरह फ़ैल गई।
सोबोन पिंगुआ का बेटा जुमाल, नुनीहाम समड् और माटा पिंगुआ के नेतृत्व में( कुन्डियाधर ,मुन्डा-रुइया ,बलांडिया खड़बन्ध,पोखरिया) के लोगों 600लोग जमा हुए।
5फरवरी 1830 के दिन सभी लोग रघुनाथ बिस्सी का सेन्दरा करने के लिए जैंतगढ़ पहुंचे पर उनके पुटिदार (खबरी/जासूस) द्वारा खबर पाकर वो(रघुनाथ) पहले ही सपरिवार उड़िसा के मोलोमनपुर करंजिया भाग निकला।
यह जानकार लोगों ने सारा दौलत और घर द्वार उजाड़ दिया।
उसके बाद रघुनाथ फिर से सिपाहियों के साथ सपरिवार वापस जैंतगढ़ लौटा।
दोबारा उनके जैंतगढ़ आने की खबर सुनकर 1500-2000हो’ लोग 15 फरवरी 1830 को जैंतगड़ की ओर चल दिए।
इस बार भी खबरी ने पहले ही सचेत कर दिया और राजा बगल के गांव #रिमड़ी में सपरिवार छुप गया।
रिमड़ि गांव को चारों ओर से घेर लिया गया।
जैंतगढ़ में हाहाकार मच गया।
गांव-घर में ताबाही मचा कर गाय,बैल,बकरी को वे साथ लेते गए।ऐसा करके भी इनका गुस्सा शांत नहीं हुआ।