ब्ह पोरोब का इतिहास
दुपुब दोष्तुर हो कोल लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार है, उसे मान के चलना ही हमारा धर्म है । उसे सुरक्षित रुप से मानना सब का कर्तव्य है । यह हमारी पहचान है । उसे निर्धारित समय लगन में मानना ही सत्य और लाभ दायक होता है ।
हम अगर आपना जन्म तिथि को मानते हैं तो दोष्तुर का जन्म तिथि और लगन में ही मानना सत्य मना जाता है ।
हमारे लोग किन्हीं कारणों से हमारे समाज का दोष्तुर को सामुहिक एकता के रुप मे नहीं माना पा रहें हैं । यह सत्य है क्योंकि कई सालों से हमारे लोगों ने आपना तरीका बदल दिया है । उसे सुधारना देर हो सकता है और नहीं भी क्योंकि हमारे लोग नहीं चाहते हैं कि हम भी आपना असल रुप से आपना दोष्तुर को खड़ा करेंगे ।
हो सकता है दष्तुर ज्ञान और जानकरी का अभाव है । परन्तु जानकार लोगों से बिस्तार रूप से इसपर चर्चा होनी चहिये । व्हारङ चिति पढ़ने के साथ-साथ दोष्तुर का शिक्षा भी मिलना चाहिये ताकि लोग अपने बोंगा दष्तुर को अपना सकें ।
एैसा बिलकुल नहीं कि समाज के लोगों को कुछ नहीं मालूम, जिन्हें मालूम है वही लोग दोष्तुर को मानते हैं ।
मानने का तारिका अलग नहीं है परन्तु ठीक समय पर मानया जाए तो दोष्तुर का लाभ मिल सकता है, वरना असमय पूजा व्यर्थ होगा ।
जैसे हमारे लोक कथा में ही है कि “हमारे पर्व त्योहार प्रकृति से सम्बन्धित है, प्रकृति ही हम को पर्व मानने को इंगित करता है । जैसे:- हमारे लोक लोचन में हमारे पर्व ब्ह (फूल) और जो (फल) से सबंधित है । लेकिन प्रकृति के इसी सबंध को हम समझ नहीं पा रहें हैं ।
आइये संक्षिप्त जानकारी लें…
ब्ह पोरोब – ब्ह पोरोब के बारे दो तरह की लोक कहानी बताया जा रहा है ।
१. एक जैसे श्री धनुर सिंह पुरति जी का कहानी अलग है, जो कि परवर्ति काल मे लोगों का मान्यता के आधार से लिखा है और लुकु लुकुमि के आधार से भी लिखा है, परन्तु प्रमाण सिद्ध नहीं है । लोग उसी का विशवास करते आ रहें हैं लेकिन असलियत वह नहीं है ।
२. दूसरा जो गुरु कोल लाको बोद्रा का निबंध से ब्ह पोरोब का शोध और प्रामाणिक है । हम उसी के आधार से ही चलतें हैं, परवर्ति काल में वह कुछ अलग लोक कथा से फैल गया होगा । परन्तु मूल तो वही है जो गुरु लाको बोद्रा का संगृहीत है ।
बोद्रा जी ने हरएक बात को खुल कर नहीं लिखा उसी का संक्षिप्त रुप से लिखा है जिसे वेद भी हम कहतें हैं ।
जैसे…
एक उदाहरण दिया जा रहा है । उसे समझने में कितना गंभीर लेना होता है ।
“चेतान दिशुमे दो जेटे सिंगि
नोको रे गतिञे लं नुम्बु लेना !
लतार गमाये दो जरगि जापुड्
चिमाय रे संआञे लं चातोरेना !
चेतान दिशुमे दो तिरिले पुनुर
तिरिले पुनुर रेलं नुम्बु लेना,
लातारे गमाये दो डेलेका बुड़ु
डेलेका बुड़ु रेलं चातोरेना ।”
इस तरह कथा कहानी को कैसे बिस्तार से जाएंगे । यह सिर्फ़ जानकारी लिया हुआ दोष्तुर बिद्वान से मिल सकता है । इसलिये हर व्हारङ चिति मोंडो में साप्ताहिक या मासिक रुप से पाटुआ (छात्रों) को उस तरह का जानकारी मिलनी चहिये । क्योंकि इस तरह की कथा कहानी मेें ही हमारे असल दोष्तुर छुपा हुआ है ।
* उसी तरह दमा, दुमं के विषय में भी हम जानें…
एक दमा दुमं ताड़ो को समझिये खुद यह ताड़ो का अर्थ क्या हो सकता है –
“बंडि गुम्पुड़ु रेन्डेंङ कोन्डेङ” बस इतना सा ही है ।”
ब्ह पोरोब के विषय में खास मन्यता संक्षेप में… मागे पोरोब के बाद लुकुमि माह गर्भवती हुई थी । डियङ का व्यवहार जानने के बाद दैनिक रुप से व्यवहार करने लगे थे दोनों । लुकु हाम हमेशा बुल बुतुल में डुब रहने लगे थे । मागे व्होगा मान मनातिं के बाद वह और व्होगाबुरु को भूलने लगे थे । ब्ह पोरोब का लगन आ गया, सिञव्होगा का ही चोबि (लीला) से उसे शिक्षा देने के लिये योजना थी ।
लुकुमि माँ पानी लाने गयी थी, उस समय सरजोम ब्ह कहीं से हवा में उड़कर लुकुमि माँ के लेने वाला झरना के पानी में था, पानी लेते वक्त बागेया व्होंगा कूला (बाघ) के रुप में उनके नजदीक से खुद कर चले गये ।और भी किसि जन्तु रुप मे डरने लगे। गर्भवती लुकुमि माँ डर से घर भाग गयी । घर आकर देखा तो लुकु हाम बुल बुतुल (नशे में) बैठा हुआ है । लुकुमि माँ “बोरो कुर कुर ते” लुकु हाम को एक लात मारी यह कहते हुए कि… “आम दो होनङेम बुला कानोआ एन्ते आंञ आलं हा लतार रेन कोदो नि ईनिः को बोरो इचिञाः या………..जु सासोन कोम…. बार आपे दाऊ केया कजि ते काये आयुम लेड ते मि काटादोए तेगा लिया… लुकु हाम रिता लेना।”लुकु हाम रिता कुर कुर लेना। पेःए ओल केडा कुर कुर ते…. ओकोन लेकान को मते बोरोम तना……
(कहानी रेया details कागे कजी पराओ तना रेयो basic जगार आटकार एतो लगिड ओला कना)
कहानी का मुख्य अंश – हेरेल (पति) को मारना एरा का अधिकार नहीं और नियम के विरोध माना जाता है वह एक महाकाड़ विपद है ।
लुकु हाम ने लुकुमि माँ से कहा – “तेगा दोम देगा किडिंञा.. ओकोय बोरो इचि केड मेया इनिः उदुबाञ मे…… सेन काते नेलको तान रेदो सारी तेगे जीऊ जन्तु कोआः एरेंगा किं नेल केडा। एन्ते किं रुआ लेना । एन्ते लुकु हम लुकुमि मा ये कजीआइ ताना….. आते गा आंञेम तेगा किडिञ तेयाः दो गा एसु मरं काड़ ओन्डोः आलंआ बिपद तना एन्दो नेन तेगा किडिञ दोष दो चेनाः तेम हाउर तोपांञा, नेनाः का बुगिना…….नेन तेगा मरकाम तोपा दनंइञ एनं ओत रेन आम बोरो केन कोदोंञ सासोन दाइया कोआ… .. बानरे आम लेकागे सोबेन आलं लतार रेन जीऊ जन्तु को तेगाञा……. . लुकुमि माँ बर जीबोन रेयाः दुकु लनाःह याना…. दुकु… उड़ुः रेगे ताइ याना… ।
एन्ते लुकु हाम गे कजि एमाइया “आलोम उड़ुना…. जु एनकन ब्ह आगुइम ओकोन ब्ह का गोसोना, गोसोयान रेयो जोरोङ जाकेड् एनका गे नेलोःआ एन ब्ह आगु केहते ब्ह तोपाञ रेदो आलंआः दोष दुषिया गुंचाओ राआना ओन्डोः सनाम ओत रेन जीऊ को आमबोरो केन कोंञ सगार ओन्डोः सासोन दाइयाः कोआ।”……………
लुकुमि माँ ब्ह नम रे कुरु मुटु लेना मेन्दो काये नम लेडा एसु जति व्ह ये आगु लेडा सोबेन गोसो लेना….. मुचड् रे जायेरा माँ गे मिरू रुप ते सरजोम ब्ह उदुबाइ ते पेड़ेः होचाः लेड् ते आगु लेडा….. लुकु हाम एन ब्ह ते ब्ह तोपा लिः लो लुकु हाम एन सरजोम व्ह कोतो सेरें रे उल्टा ते बिड बाड लेन ते व्होगाबुरु कोकिं गोहरी ममारङ लेड् कोवा:ओन्डोः व्ह पोरोबरेया रेयाः माइन ममारङ किं रिकाकेडा।…….. एन चनाब लुकुमि मा कजी लेकाते संगार बिरे सेन लेना………..रूतु, चिरु चरिः ओन्डोः मनि जं साब काते….. रूतु दो ईम षुर रेयाः षुउर षाड़ि तना…. एन ते एन ओरं षाड़ि षुउर ते सोबेने जन्तु कोये केया जपाः लेड कोआ… रुं को लटा माडको जला कोरे तोल लेड कोआ…. – ओन्डोः आयाः देंगाः रे आचु लेड कोआः….. …. एन चोड़न नाः आबु रे मेनाः गेया…..
एनामेंते ब्ह पोरोब चनाब दोको संगारा मिः चान्डुः गोटा……व्होगाबुरु को व्ह पोरोब रेयाः माइन नाम केरे… सनाम जन्तु को मि चान्डुः गोटा इलाम को आकोआ……
नेन कजी जोका अटकारे लगिड् टुटका तेगे जगारेयाना, साइका रेनाः जगार दो एसु गे नोतोर जिलिङा । आबुमन को ब्ह पोरोब रेयाः एतो चिलिकाते एतोयाना एना चिरगल होबान का मेंतेगे जगार टुटका ते उदुबेयाना ।
एनामेंते गे चोके चड्लोम (सुड़े सागेन) रे ब्ह पोरोब दो पोरोबेन तेया:, ब्ह सरदि रेदो “बा पोरोब” मनातिङ तेया: दो निर्ला सोएता बानोआ।
ब्ह का बिसिः बिटाल इचिःतेयाः गे ब्ह पोरोब मनातिं रेयाः ममारङ दो………
होराव का तुन्डुना
कजियोः का तुन्डुना
जोवर…
स्रोत- दुपुब दोरोम
गलिड् को लगिड् जगर तुलामला एलादाहराव: तना ।