British sarkar me manki munda
British sarkar me manki munda – सन् 1837 में कोल्हान के ब्रिटिश शासन के सीधे नियंत्रण के अधीन आ जाने के बाद जब निकटवर्ती रजवाड़ों ने लाड़का हो लोगों पर शासन का दावा किया तो उसे खारिज कर दिया गया। हो आदिवासियों में उनकी पारम्परिक मानकी-मुण्डा व्यवस्था को पुलिस लिस तथा वित्तीय प्रयोजनों के लिए बनाए रखा गया। थोमस विल्किनसन ने अपने सहायक लेफ्टिनेन्ट टिकेल को 13 मई, 1837 के आदेश द्वारा कोल्हान में हो लोगों की अपनी पारम्परिक व्यवस्था को पूरी तरह बनाए रखने का निदेश दिया। उसने मानकियों को अपने-अपने पीड़ के प्रमुख के रूप में कानूनी मान्यता दी। जब कोल्हान ब्रिटिश शासन के अधीन आया तब यहां छोटे-बड़े 26 पीड़ थे; लेकिन ब्रिटिश शासन ने बड़े पीड़ों को छोटे-छोटे पीड़ों में विभाजित किया और प्रत्ययेक पीड़ को एक मानकी के अधीन कर दिया। बहरहाल, प्रत्येक पीड़ में बीस से अधिक गांव नहीं रखे गए। सामान्यतः पीड़ के प्रभावशाली और नेतृत्व के गुणों से सम्पन्न लोग ही मानकी होते थे। मानकी अपने अधीन गांवों के मुण्डा अथवा रैयतों में से ही किसी को अपने सहायक के रूप में चुनता था। मानकी अपने सहायकों और गांव के मुण्डा लोगों की सहायता से विधि-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और राजस्व वसूली के कार्य करता था, जिसमें असिस्टेंट पोलिटिकल एजेन्ट के दुभाषियों या कर्मचारियों द्वारा न्यूनतम हस्तक्षेप किया जाता था। पुलिस प्रयोजनों के लिए पीड़ के प्रमुख अर्थात मानकी को प्रमुख पुलिस अधिकारी और मुण्डा लोगों को उसका सहायक बनाया गया। इस प्रकार, वास्तव में हो लोगों की पारम्परिक शासन व्यवस्था काः प्रत्येक पीड़ एक पुलिस अंचल था और मानकी उस व्यवस्था में एक पुलिस सब-इंसपेक्टर और मुण्डा हेड कांसटेबल की हैसियत रखता था। उन्हें हर प्रकार के अपराधियों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया था। अपराधियों को गिरफ्तार करने में सरकार की सहायता न करने पर उन्हें दण्ड का भागी भी बनना पड़ता था। मानकी और मुण्डा केवल असिस्टेंट पोलिटिकल एजेन्ट के आदेशों का पालन करते थे।
मानकी पद के उत्तराधिकार के संबंध में सन 1851 में गवर्नर जनरल के एजेन्ट जे० एच० क्रॉफोर्ड ने यह आदेश जारी किया कि मानकी का पद न तो पूर्णतः चयन पर आधारित है और न ही बिल्कुल वंशानुगत है। मानकी की मृत्यु हो जाने अथवा पदच्युत किए जाने पर पीड़ के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति को मानकी के पद के योग्य माना जाता था। लेकिन यदि मानकी ने ईमानदारी और योग्यतापूर्वक अपने कर्त्तव्य का पालन किया हो तो उसकी मृत्यु के बाद उसके वारिस या यदि कोई वारिस न हो तो उसके कुटुम्ब के किसी योग्य व्यक्ति को मानकी बनाने पर विचार किया जा सकता था। इसके अलावा, यदि योग्य मानकी की मृत्यु के समय उसका वारिस अवयस्क हो तो भी मानकी पद का उत्तराधिकारी वही होता था लेकिन उसके वयस्क होने तक उसके किसी योग्य संबंधी को उसके स्थान पर कार्यकारी (एक्टिंग) मानकी के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती थी और अवयस्क उत्तराधिकारी के वयस्क हो जाने के बाद यदि उसे योग्य पाया जाता था तभी उसे मानकी का पद पाने का हकदार माना जाता था।
हो लोगों की पारम्परिक शासन व्यवस्था को बनाए रखने और प्रोत्साहित करने के लिए उपायुक्त डॉ० हेस द्वारा 1867 के रिसेट्लमेन्ट कार्यवाहियों तथा सेटलमेन्ट अधिकारी जे० ए० क्रेवेन द्वारा 1897 में विशेष प्रयास किए गए। मानकी-मुण्डा संस्था को व्यापक बनाने के लिए डॉ० हेस ने 1867 में तहसीलदार पद के रूप में परगना लेखापालों (अकाउन्टेन्टस) की बहाली की। सेट्लमेन्ट (बन्दोबस्ती) के समय प्रत्येक पीड़ के लिए एक लेखापाल अथवा ‘राइटर’ की नियुक्ति की गई थी। ये पद बाद में भी बनाए रखे गए। लेकिन क्रेवेन सेट्लमेन्ट के दौरान तहसीलदार (अकाउन्टेन्ट) को गांव का लेखापाल बना दिया गया। मानकी को उपायुक्त के अनुमोदन से अपने क्षेत्र के प्रत्येक गांव में तहसीलदार नियुक्त करने की शक्ति दी गई थी। तहसीलदार का काम था उसके अथवा मुण्डा द्वारा रैयतों से मालगुजारी वसूल करके उन्हें रसीद देना। उसके मार्गदर्शन के लिए बनाए गए नियमों का उसे पालन करना पड़ता था और किसी कदाचार का दोषी पाए जाने पर उसे उपायुक्त द्वारा पच्युत किया जा सकता था। उसके अधीन गांव से वसूल किए गए कुल मालगुजारी पर उसे दो प्रतिशत की दर से कमिशन प्राप्त होता था। यद्यपि सैद्धान्तिक रूप से प्रत्येक गांव में एक तहसीलदार नियुक्त किया जाना था लेकिन वास्तव में मानकी अपने इलाके में एक या अधिक से अधिक दो ही तहसीलदार नियुक्त करता था।
ग्राम स्तर की व्यवस्था में मानकी के लिए डाकुवा पद को सरकार द्वारा मान्यता दी गई थी। डाकुवा की नियुक्ति मानकी द्वारा उपायुक्त के अनुमोदन से की जाती थी। डाकुवा मानकी का सिपाही होता था और पुलिस कार्य के अलावा अन्य कार्यों में मानकी की सहायता करता था। मानकी के आदेशानुसार डाकुवा को अपराधियों को गिरफ्तार करने की शक्ति थी। मानकी के समक्ष गवाहों को पेश करने, कैदियों को लाने-ले जाने, मानकी की रिपोर्ट पहुंचाने और सामान्य रूप से मानकी के चपरासी के रूप में काम करने आदि कार्य डाकुवा के थे। मानकी डाकुवा को उपायुक्त के अनुमोदन के अनुसार वेतन देता था। उपायुक्त डाकुवा को किसी कदाचार के लिए पदच्युत कर सकता था। उपायुक्त के लिखित अनुमोदन से मानकी डाकुवा की सेवा समाप्त करके उसके स्थान पर अन्य व्यक्ति को डाकुवा नियुक्त कर सकता था।
प्रत्येक मुण्डा के लिए भी एक डाकुवा का प्रावधान था लेकिन बहुत छोटे गांव अथवा जहां किसी मुण्डा का जुड़ीदार मुण्डा होता था, वहां मुण्डा के डाकुवा की जरूरत नहीं होती थी। मुण्डा के डाकुवा का पद सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होता था लेकिन गांव में वह महत्वपूर्ण व्यक्ति होता था। बहुत हद तक उसकी हैसियत एक चौकीदार की थी। वह मुण्डा को उसके सरकारी कार्यों में साथ देता था. अपराधियों को पकड़ने में उसकी सहायता करता था और अकेले भी अपराधियों को पकड़ने का काम करता था और न्यायालयों और थाना तक मुण्डा की रिपोर्ट आदि पहुंचाने का काम करता था। वह ग्रामीणों को मालगुजारी जमा करने के लिए या पंचायत में हाजिर होने के लिए मुण्डा अथवा तहसीलदार के समक्ष बुलाता भी था। सामान्यतः डाकुवा कोई तांती या ग्वाला (गाउ) होता था लेकिन हो लोगों में से या मुण्डा के रिश्ते का कोई व्यक्ति भी डाकुवा होता था।
प्रशासन का मुख्य उद्देश्य यही था कि कोल्हान को हो लोगों के लिए सुरक्षित रखा जाए और उनका शासन-प्रशासन उनकी अपनी परम्परा के अनुसार ही बना रहे। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मानकी और मुण्डा को उपायुक्त के नियंत्रणाधीन रहने की आवश्यकता थी। इस प्रकार के नियंत्रण प्रशासनिक आदेशों अथवा 1908 में छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट पारित होने के पूर्व के नियमों द्वारा किए जाते थे। बहरहाल, ऐसे प्रशासनिक आदेशों का कोई कानूनी आधार नहीं होता था इसलिए वर्तमान स्वरूप के प्रशासन को कानूनी बैधता प्रदान करना जरूरी था। लेकिन छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट द्वारा भी उक्त उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाई। 1908 के छोटानागपुर टैंनेन्सी एक्ट के अधीन मानकी और मुण्डा को भू-धारक (टेन्योर होल्डर) के रूप में अभिलिखित किया गया और जब तक वे छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट की धारा 77 के अधीन नहीं आते, जो कि संदिग्ध था, उपायुक्त के आदेश द्वारा उन्हें दण्डित करना अथवा पदच्युत करना अवैध प्रतीत होता था। अतः, छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट, 1908 के अधीन अधिकारों का अभिलेख तैयार करने का निर्णय कोल्हान के रिसेट्लमेन्ट (1913-18) के शुरू होने के पूर्व किया गया। इस सम्बन्ध में जो विचार-विमर्श शुरू हुआ, उसमें सरकार द्वारा जिन अधिकारियों से परामर्श किया गया, उनमें स्पष्ट रूप से मतभेद था। स्थानीय अधिकारियों को आपत्ति इस बात पर थी कि यदि मानकी-मुण्डा कोस्थायी ‘टेन्योर-होल्डर’ के रूप में अभिलिखित किया गया तो मानकी-मुण्डा को पुलिस के कार्य, राजस्व वसूली और अन्य ऐसे कार्य करने के लिए, जिनके लिए मूल रूप से उन्हें नियुक्त किया गया था, बाध्य करने में उपायुक्त को कठिनाई होगी। अतः उन्होने यह सिफारिश की कि ‘रिसेट्लमेन्ट’ के पूर्व ऐसा एक विशेष अधिनियम बनाया जाए, जो केवल कोल्हान को लागू हो और उन सिद्धान्तों को बैधता प्रदान करता हो, जिन पर कोल्हान एस्टेट का प्रशासन तब तक आधारित था। लेकिन सरकार ने कोई विशेष विनियम बनाने से इन्कार कर दिया और यह निर्देश दिया कि छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट के प्रावधानों के अधीन सर्वे और सेट्लमेन्ट की कार्यवाहियां जों रहें। कोल्हान में मानकी-मुण्डा की स्थिति के संबंध में टकी सेट्लमेन्ट रिपोर्ट ने यह निष्कर्ष दिया कि मानकी और मुण्डा की स्थिति न तो आरम्भ में और न तब एक भू-धारक (टेन्योर-होल्डर) की थी बलिक उनकी स्थिति गांव के सरकारी प्रतिनिधि की थी। ए० डी० टकी के सेट्लमेन्ट के दौरान खेवट में मानकी-मुण्डा को ‘टेन्योर-होल्डर’ के रूप में अभिलिखित किया गया था क्योंकि छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट, 1908 के अधीन उन्हें अन्य किसी रूप में अभिलिखित करना संभव नहीं पाया गया। लेकिन वास्तव में अधिनियम के किसी भी प्रावधान में उनकी स्थिति सही तौर पर परिभाषित नहीं की जा सकी। वे उपायुक्त के कार्यपालिका-नियंत्रण के अधीन थे और कोल्हान की सम्पूर्ण प्रशासनिक पद्धति उस नियंत्रण को बनाए रखने पर आधारित थी। उनके अधिकार और कर्त्तव्य विशेष ‘मानकी या मुण्डा के अधिकार-अभिलेख अर्थात’ हकूकनामा में अभिलिखित थे, जो अभिलेख का भाग है और छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट की धारा 132 के अधीन अन्तिम और निर्णायक है।
वास्तव में मानकी और, मुण्डा सरकारी अधिकारी थे न कि ‘टेन्योर-होल्डर’ थे। कोल्हान में लखराजदारी गांवों के अलावा. वास्तविक ‘टेन्योर होल्डर कोई नहीं था और रैयती टेनेन्सी में सभी भूमि सीधे सरकार के अधीन थी। कोल्हान के मानकी-मुण्डा की स्थिति छोटानागपुर के अन्य आदिवासी ग्रामीण मुखियाओं (हेडमेन) से भिन्न थी। वे प्रमुखतः ऐसे अधिकारी थे, जो ग्रामीणों में से और कुछ हद तक ग्रामीणों द्वारा चुने गये थे और जो न केवल राजस्व की वसूली के लिए बल्कि अपने-अपने इलाकों में पुलिस के कार्य, जंगलों, पेड़ों और सड़कों आदि की देख-रेख के लिए 11/12 थे। वास्तव में वे उन सब कार्यों के लिए उत्तरदायी थे जा कार्य कोल्हान के बाहर सरकार के अधीनस्थ अधिकारी और स्थानीय
निकायों द्वारा किए जाते थे। डाकुवा के थे। मानकी डाकुवा को उपायुक्त के अनुमोदन के अनुसार वेतन देता था। उपायुक्त डाकुवा को किसी कदाचार के लिए पदच्युत कर सकता था। उपायुक्त के लिखित अनुमोदन से मानकी डाकुवा की सेवा समाप्त करके उसके स्थान पर अन्य व्यक्ति को डाकुवा नियुक्त कर सकता था।
प्रत्येक मुण्डा के लिए भी एक डाकुवा का प्रावधान था लेकिन बहुत छोटे गांव अथवा जहां किसी मुण्डा का जुड़ीदार मुण्डा होता था, वहां मुण्डा के डाकुवा की जरूरत नहीं होती थी। मुण्डा के डाकुवा का पद सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होता था लेकिन गांव में वह महत्वपूर्ण व्यक्ति होता था। बहुत हद तक उसकी हैसियत एक चौकीदार की थी। वह मुण्डा को उसके सरकारी कार्यों में साथ देता था, अपराधियों को पकड़ने में उसकी सहायता करता था और अकेले भी अपराधियों को पकड़ने का काम करता था और न्यायालयों और थाना तक मुण्डा की रिपोर्ट आदि पहुंचाने का काम करता था। वह ग्रामीणों को मालगुजारी जमा करने के लिए या पंचायत में हाजिर होने के लिए मुण्डा अथवा तहसीलदार के समक्ष बुलाता भी था। सामान्यतः डाकुवा कोई तांती या ग्वाला (गाउ) होता था लेकिन हो लोगों में से या मुण्डा के रिश्ते का कोई व्यक्ति भी डाकुवा होता था।
प्रशासन का मुख्य उद्देश्य यही था कि कोल्हान को हो लोगों के लिए सुरक्षित रखा जाए और उनका शासन-प्रशासन उनकी अपनी परम्परा के अनुसार ही बना रहे। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मानकी और मुण्डा को उपायुक्त के नियंत्रणाधीन रहने की आवश्यकता थी। इस प्रकार के नियंत्रण प्रशासनिक आदेशों अथवा 1908 में छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट पारित होने के पूर्व के नियमों द्वारा किए जाते थे। बहरहाल, ऐसे प्रशासनिक आदेशों का कोई कानूनी आधार नहीं होता था इसलिए वर्तमान स्वरूप के प्रशासन को कानूनी बैधता प्रदान करना जरूरी था। लेकिन छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट द्वारा भी उक्त उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाई। 1908 के छोटानागपुर टनेन्सी एक्ट के अधीन मानकी और मुण्डा को भू-धारक (टेन्योर होल्डर) के रूप में अभिलिखित किया गया और जब तक वे छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट की धारा 77 के अधीन नहीं आते, जो कि संदिग्ध था, उपायुक्त के आदेश द्वारा उन्हें दण्डित करना अथवा पदच्युत करना अवैध प्रतीत होता था। अतः, छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट, 1908 के अधीन अधिकारों का अभिलेख तैयार करने का निर्णय कोल्हान के रिसेट्लमेन्ट (1913-18) के शुरू होने के पूर्व किया गया। इस सम्बन्ध में जो विचार-विमर्श शुरू हुआ, उसमें सरकार द्वारा जिन अधिकारियों से परामर्श किया गया, उनमें स्पष्ट रूप से मतभेद था। स्थानीय अधिकारियों को आपत्ति इस बात पर थी कि यदि मानकी-मुण्डा को स्थायी ‘टेन्योर-होल्डर’ के रूप में अभिलिखित किया गया तो मानकी-मुण्डा को पुलिस के कार्य, राजस्व वसूली और अन्य ऐसे कार्य करने के लिए, जिनके लिए मूल रूप से उन्हें नियुक्त किया गया * था, बाध्य करने में उपायुक्त को कठिनाई होगी। अतः उन्होने यह सिफारिश की कि ‘रिसेट्लमेन्ट’ के पूर्व ऐसा एक विशेष अधिनियम बनाया जाए, जो केवल कोल्हान को लागू हो और उन सिद्धान्तों को बैधता प्रदान करता हो, जिन पर कोल्हान एस्टेट का प्रशासन तब तक आधारित था। लेकिन सरकार ने कोई विशेष विनियम बनाने से इन्कार कर दिया और यह निर्देश दिया कि छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट के प्रावधानों के अधीन सर्वे और सेट्लमेन्ट की कार्यवाहियां जों रहें। कोल्हान में मानकी-मुण्डा की स्थिति के संबंध में टकी सेट्लमेन्ट रिपोर्ट ने यह निष्कर्ष दिया कि मानकी और मुण्डा की स्थिति न तो आरम्भ में और न तब एक भू-धारक (टेन्योर होल्डर) की थी बलिक उनकी स्थिति गांव के सरकारी प्रतिनिधि की थी। ए० डी० टकी के सेट्लमेन्ट के दौरान खेवट में मानकी-मुण्डा को ‘टेन्योर-होल्डर’ के रूप में अभिलिखित किया गया था क्योंकि छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट, 1908 के अधीन उन्हें अन्य किसी रूप में अभिलिखित करना संभव नहीं पाया गया। लेकिन वास्तव में अधिनियम के किसी भी प्रावधान में उनकी स्थिति सही तौर पर परिभाषित नहीं की जा सकी। वे उपायुक्त के कार्यपालिका-नियंत्रण के अधीन थे और कोल्हान की सम्पूर्ण प्रशासनिक पद्धति उस नियंत्रण को बनाए रखने पर आधारित थी। उनके अधिकार और कर्तव्य विशेष ‘मानकी या मुण्डा के अधिकार-अभिलेख अर्थात’ हकूकनामा में अभिलिखित थे, जो अभिलेख का भाग है और छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट की धारा 132 के अधीन अन्तिम और निर्णायक है।
वास्तव में मानकी और मुण्डा सरकारी अधिकारी थे न कि ‘टेन्योर-होल्डर’ थे। कोल्हान में लखराजदारी गांवों के अलावा. वास्तविक ‘टेन्योर-होल्डर’ कोई नहीं था और रैयती टेनेन्सी में सभी भूमि सीधे सरकार के अधीन थी। कोल्हान के मानकी-मुण्डा की स्थिति छोटानागपुर के अन्य आदिवासी ग्रामीण मुखियाओं (हेडमेन) से भिन्न थी। वे प्रमुखतः ऐसे अधिकारी थे, जो ग्रामीणों में से और कुछ हद तक ग्रामीणों द्वारा चुने गये थे और जो न केवल राजस्व की वसूली के लिए बल्कि अपने-अपने इलाकों में पुलिस के कार्य, जंगलों, पेड़ों और सड़कों आदि की देख-रेख के लिए भी उत्तरदायी थे। वास्तव में वे उन सब कार्यों के लिए उत्तरदायी थे जो कार्य कोल्हान के बाहर सरकार के अधीनस्थ अधिकारी और स्थानीय निकायों द्वारा किए जाते थे।
स्रोत – जोहार सकम