Warang Chiti is one of the oldest scripts in the world
Warang Chiti is one of the oldest scripts in the world created for human society उक्त ‘वारङक्षिति’ के निर्माण करता “देवाँ तुरी था जो भगवान धनवन्तिर के समकक्ष माना है। इसके जीवन काल के बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है लेकिन विभिन्न विद्वानों के मतानुसार 6000 ईसा पूर्व, 60000 हजार वर्ष, लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व माना जाता है। इसके पूर्व पूरे संसार में कोई लिपि नहीं थी। यह लिपि ईश्वरीय प्रदत्त औपोरूषीय प्रकृति का अमूल्य उपहार, धरोहर तथा वरदान है।
आधुनिक हो (कोल) जनजाति की संस्कृति, लिपि और शिक्षा का श्रेय गुरू कोल लको बोदरा को है जिन्होंने अथक प्रयास शोधकार्य (हिड्नम, बोंगानम, सुटिःनम) के बाद 1954 में इसे ‘हो’ समुदाय के सामने लाया। उसी वर्ष आदि समाज (दुपुव हुदा) ‘ऐटेःए तुतुर्ड अक्हड़ा’ जोड़ापोखर, झीकपानी में स्थापना किया। यह सात सदस्यों की समिति थी। वारङक्षिति के प्रथम विद्यापीठ के रूप में स्थापना हुआ जिसका पंजीयन 13 अप्रैल 1976 महानिरीक्षक निबंधन बिहार सरकार से कराया गया तथा संस्थान का नाम बदलकर ‘आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान’ रखा गया। वर्तमान में यह संस्थान झीकपानी के पास टोन्टो प्रखण्ड, पश्चिमी सिंहभूम में संचालित है।
इस वारङक्षिति लिपि को पंडित रघुनंदन शर्मा लिखित ‘वैदिक सम्पत्ति या अक्षर विज्ञान’ किताब (250 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व) में देखा जा सकता है। विश्व प्रसिद्द गिनीज बुक में भी इसका प्रमाण मिलता है। उसमें लिखा है “वर्णमाला का प्राचीनतम उदाहरण उगाटि, सीरिया, सुमेर, अफ्रीका तथा ईरान से प्राप्त है जो कि लगभग 1450 ईसा पूर्व का एक लेख है, जिसमें 32 अक्षर है। दुनिया के सभी वर्णमालाओं में ‘ङ’ (ओङ) प्रथम स्वर तथा सबसे पुराना आधार है।
इस वारङक्षिति लिपि ने हो भाषा के विकास को गति प्रदान करने के साथ – साथ लोगों को भाषा की सोच की दिशा ही बदल दी है, जो ‘हो’ समाज के लिए गौरव की बात है।
वारङ चिति द्वारा आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा के सभी शब्दों को एक बोली के उच्चारण को अक्षरश लिखे जाने की क्षमता पाई गई । वारङ चिति लिपि में 32 वर्णमाला है जो आस्ट्रो-एशियाटिक मुण्डा समुदाय के ऐतिहासिक तथ्यों से संबंधित एवं सांस्कृतिक बातों पर आधारित है जिसे कोल लको बोदरा ने साक्ष्यों के आधार पर प्रस्तुत किया यह लिपि में आध्यत्मिक के साथ साथ वैज्ञानिकता भी है