Borobunji Bonga ka mahatva
Borobunji Bonga ka mahatva-बताया जाता है कि यह प्रचलित बोड़ोबुञ्जी पूजा लोग सदियों से मनाते आ रहें है; पूर्वजों या बुजुर्गों वर्गों का कहना है कि वर्ष में एक बार अवश्य करना है। शांति एवं रोगो बिमारियों से रक्षक का द्योतक माना जाता है। मागे पर्व की समाप्ति के दूसरा महीना बाद ही जो कोलोम बोङगा के पश्चात् दो सप्ताह पर रूईहर दिन पूजा की जाती है। तात्पर्य यह है कि इन त्योहारों के बाद सांस्कृतिक से जुड़े सभी देवगण अपने अपने घरों पर आराम जैसे मनुष्यों की रक्षा का कार्य छोड़ सा किया बैठते हैं। ऐसी परिस्थिति में रक्षकों के अभाव में मौका पाकर शैतान भूत प्रेतों रंकनी जुगणियों का अत्याचार शुरू कर बैठते हैं। नतीजा क्या होता है, तरह-2 के रोग बिमारियों घरेलू पशुओं गौ माताओं बैल बकरी भेड़ एवं मनुष्यों पर भी फैलने का भयंकर भय का सामना करना पड़ता है। जहाँ कहीं किसी गाँव पर संक्रमिक रोग फैला, अविलम्ब गाँव वाले एक जूट हो जाते है सामग्रियाँ इकट्टा कर शैतानों के नाम पर खदेड़ भगा कर सांस्कृतिक देवों की आराधना करते हैं और रोग दूर हो कर शांति का राहत मिल जाता है। यह बात सही है किसी कारण अथवा आदमी की गलमफहमी में रोग फैलता है सांस्कृतिक देव भी बिगड़ बैठते हैं खास कर मरं बोंड़ा बिगड़ने पर अधिकतम रोगो का फैलाव तुंरत होने लग जाता है। इसलिए मरंवोग का स्थान भी ऊँचा है। आदर सत्कार के साथ उसकी आराधना एवं पूजा की समाग्रियाँ शाँति हेतु चढ़ाने होगा इसीलिए पूजा का आदर्श देना परम्परागत ख्याति है। मान एवं मर्यादा है। तत्पश्चात् गाँव के सभी बुढ़ों बुढ़ी, जवान जवानी एवं बाल बच्चों सहित एक जगह हेल-मेल कर खान पान खुशीयाली मनाते है; इस लेख के अध्ययन से अशिक्षित तथा अनुभिज्ञ भाई बहन शिक्षा एवं प्रेरणा प्राप्तकर सकते है। (समाप्त)
स्रोत – कोल हो’ संस्कृति(दोष्तुर) दर्पण