Kol Lako Bodra ki jivni
Answer ➡️ #चूंकि उनका जन्म अंङाइ पोनइ (अनंत चतुर्दशी)🌕 को ही हुई थी। जो आदिवासी हो’ पञ्चांग के अनुसार #जोनोम् महीने के चौदहवीं पर पड़ती है।
तो आइए इस विषय पर साक्ष्यों की ओर चलते हैं
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🔬#मातृघोषित – आठवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान उन्होंने अपनी माताजी #हिर्रा जानो कुई से यह प्रश्न किया था कि उनका असली जन्मदिन क्या है ❓
तब उनकी माताजी ने बताया कि उनका जन्म जोनोम् इन्दि चन्डु:🌕 के अंङाइ को हुआ था। और उसके दूसरे दिन हो’ समाज के लोगों का #करम पोरोब् था।
स्कूल शिक्षक के द्वारा उसका Birth date गलत लिखा गया है।
🔬#आत्मघोषित (लको बोदरा जी के द्वारा घोषित) – ओत् गुरु के समय से ही उनके शिष्यों ने उनकी उपस्थिति में ही उनकी जोनोम दिलं को #जुमुलय दिलं
के रूप में मनाना शुरू किया था।
उसी दिन बोदरा जी ने कहा था कि “मेरा असली जन्मदिन यही जोनोम् अंङाइ 🌕 है । ”
उसी दिन से हर वर्ष उनके संस्थान (एटे: तुर्तुङ सुल्ल् पिटिका अक्हाड़ा) में सभी जगह जोनोम महीने की अंङाइ को #ओत् गुरु जी के नाम “जुमुलय दिलं” मनायी जाती आ रही है।
🔬#लिटा गोर्गोणिड् – तत्कालीन प्रकाशित #रूल इञ् ओङ पञ्चांग (लिटा गोरगोणिड्) इस बात का साक्ष्य प्रमाणित करता है।
🔬#रगु वंश – ओत् गुरु के द्वारा रचित कुर्सीनामा पर आधारित पोथि #रगुवंश में – “ह्बेद: सिदा दोंसि इया गेलेरेया सउ गेलेरेया(1919)मसमत सितम्बर नुड़ु: नेतयबेन ” का जिक्र है।
🔬#बिड् दिरि- उनके पैतृक ग्राम पासेया में स्थापित #स्मारक शिलापट्ट (बिड् दिरि) में #जोनोम इन्दि अंङाइ 1919 लिखी हुई साक्षात देखी जा सकती है।
#Note:- उक्त पोथि तथा शिलापट्ट में कहीं भी 19September का जिक्र नहीं है।
🌄अब आइए हम हमारी #आदिवासी दर्शन को समझते हैं-
चूंकि हम प्रकृति पूजक हैं –
हमारे पहचान ही है प्रकृति पूजक
प्रकृति यानी हम पृथ्वी पर मौजूद आदिवासी आदिकाल से प्रकृति को ही अपना सबकुछ मानते आए हैं ।
#वो हमारे महान पूर्वज ही हैं जिन्होंने प्रकृति को करीब से जाना सूर्य, चन्द्रमा ,तारे एवं ग्रह नक्षत्रों को समझा ।
#उनको अनुसरण किया।
#उनके ज्ञान को लोक गीतों में रचाया।
इस आदि संस्कृति की आदि काल से प्रचलित मगे पोरोब् की लोक गीत से हम आभास लगा सकते हैं-
➡️इपिल्ल् कोदो इपिल्ल् को
गोरगोणिड् कोदो गोरगोणिड् को
षुरू षुरू जोहजोह सकम रेको सिरजोन लेना।
अर्थात हमारी आयु #जोम सकम (जोहजोह सकम ) इपिल्ल् गोरगोणिड्(सूर्य, चन्द्रमा, तारे ) की परिक्रमा पर ही आधारित है।
#इनकी परिक्रमा के आधार पर हमारी आयु दिन ब दिन घटती जाती है।
#हमारे आदिवासी पूर्वज इन ग्रहों की चाल से आभास लगा लेते थे कि पृथ्वी पर कब कौन सी विपदा आने वाली है।
#कब कितनी बारिश होगी यह भी हमारे पूर्वज सूर्य चन्द्रमा की 🌒 चाल से आभास कर लेते थे।
#वर्ष में अकाल होगी या नहीं — शुरुआती महीना मगे चन्डु: के जोमषुइम से लेकर कितने दिनों में गणना की जानी है इनका भी जानकारी हमारे पूर्वजों को थी।
#हमारे पूर्वजों की पोरोब् पोनइ 🌕 शब्द की महत्व को गहराई से समझते थे।
एवं वो प्रकृति तालमेल से जुड़े थे।
(पर आज हो’ समाज प्रकृति के अनुकूल न होकर अंग्रेजी Date की ओर रुख करने लगे।
और अपनी आदिवासी प्रकृति पूजक होने का दर्शन एवं पहचान गवां बैठे।)
और प्रकृति पूजक से #Date पूजक बन गये।
वाह वाह वाह वाहठोको ताली ठोको!
कोल मुरुकु हन्डिये गोरु ….
एनैते बु मेने तना कुला बलु हुव: गोत: ले तना प्रकृति लेकाते पोरोब् पोनइ 🌕 असाड़ा उड़ि रे सेबा षड़ा बगे केएते जा इमितेगे पोरोब बु बई रेदो रिंगा बिरञ्जि होबन गेया।
अन्डो: अबुअ: षुरु षुरु जोमसकम (आयु) मुचाडो: गेया ।
आज हम गधे और नलायक निकले ।
आज हम प्रकृति गणना तो दूर ।
जिन्होंने हमें असली प्रकृति पूजक होने का दर्शन दिया
उस महान #आदिवासी प्राकृतिक Philosopher #लको बोदरा जी के द्वारा रचित प्राकृतिक कैलेंडर,उनके अनुयाई एवं उनकी संस्थान को हेय दृष्टि से देखकर आज अपनी तुच्छताओं को दिखा रहे हैं।
हमारी Identity प्रकृति पूजक है।
Date पूजक नहीं।
एनरेयो मेतम अबुअ: पोटाणि दो का अदिके ।
-अले दो दिरि -दरु , बुरु -गड़ा कोरेले बोंगा: मेनकेहते पोरोब् पोनइ दो प्रकृति लेका बगे केयते English date रेपे बई गेया।
एनव पोनइ बगे केएते निरसन्दि,कोरे केच: कोरे। एनैते पे मेनेय: अले दो प्रकृति पूजक को।ओकोय सरिया पेया।
समा दिरि लपाका ओन्डो: दरुम उदुब केएरे प्रकृति होबाना…..
प्रकृति अनन्त है यारों इतना संकीर्ण मानसिकता मत रखा करो ,दुनिया वाले वरना सूसू करेंगे हम पर।
मैंने सोचा नहीं था कि हो’ समाज में खुद को विद्वान समझने वाले लोगों की सोच इतनी छोटी होगी।
आज समाज के बुद्धिजीवियों को जरूरत है लको बोदरा जी के Philosophy को समझने की।
वरना ऐसे ही समाज को दो भागों में बांटकर आदिवासियों की असली पहचान को डुबो बैठेंगे।
अब मैं 19 सितंबर को लको बोदरा जी के जन्मोत्सव मनाने वालों को मना तो नहीं करुंगा ,
मैं कौन होता हूं मना करने वाला ,
चूंकि जन्मोत्सव जब भी मनाया जा सकता है मगर जयन्ती सिर्फ एक निश्चित तिथि को ही मनाया जाता है।
मगर एक बात है दिसुम तला रे आदिवासियत चि प्रकृति पूजक रेय: उनुरुम अम: पुरखा पूर्वज कोव: ममारं (इज़्ज़त)रिका रका अर Record गेम सनं तन रेदो प्रकृति गणना गे समानङे में।
(नेनागे अम: प्रकृति पूजक रेय: सप्पब दो -☝️🐆🐅)
अन्डो: Date पूजक मेन्ते उदुबेन सनं में तन रेदो।
English Date समानङे में।
(अन्डो: दिसुम तलय ते अम:उनुरुम अडे मे।)
अब भी वक्त है जागो हो’ बन्धुओं जागो।
2018 रे जोनोम् अंङाइ 🌕 23 September रे होबा लेना।
2019 रे 12 September 🌕
2020 रे 1 September 🌕
2021 रे 19 September 🌕
2022 रे 9 September 🌕
2023 रे 30 August
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
By
Hirla manntan Sajan Hessa
Institute of ancient culture and science society, jhinkpani