Kolhan vijay divas ki parampara
कोल्हान विजय दिवस की परंपरा:-19 नवंबर 1837 को पोटो हो के नेतृत्व में सेरेंगसिया घाटी में हो विद्रोहियों ने अंग्रेजी सेना पर तीर धनुष से भयंकर आक्रमण कर दिया था। उस घटना के तिथि पर भिन्नता दिखाई दे रहा है। अधिकतम फेसबुक से जुड़े प्रबुद्धजनों ने 18 नवंबर 1837 का उल्लेख किया है। जो फेसबुक में अपलोड भी किया गया है। स्वाभाविक है इतिहासकारों में भिन्नता हो सकती है। लेकिन कोई भी इतिहासकार रिकॉर्ड रूम या लाइब्रेरी में उपलब्ध श्रोत को संकलित कर ही कोई किताब लिखते है। ऐसे ही किसी लेखक के द्वारा लिखा गया किताब पढ़कर ही 18 नवंबर 1837 के तिथि को कोल्हान विजय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है,जिसकी संभावना है। यह भी कम कौतूहल का विषय नहीं है। कोल्हान विजय दिवस मनाने का प्रचलन भले बहुत पहले से नही मनाया जा रहा हो। लेकिन जो हो यह पहल और प्रचलन सकारात्मक तो है। कोल्हान के लिए यह प्रचलन जिज्ञासा भरा है। इस प्रचलन के अभिप्रेरणा को लोग खोजना शुरू करेंगें।अनुसंधान करने वाले छात्र के लिए विभिन्न श्रोत को खंगालने जैसे है। जिस जिज्ञासा के कारण कोल्हान पर आधारित किताबों की खोज की जाएगी। हम भी बहुत ही सरसरी तौर पर कुछ किताबें पढ़ा है। अब उन किताबों की खोज करने में परेशानी हो रही है। कमी निजी लाइब्रेरी की है।मुझे भी कोल्हान पर कुछ तो फेसबुक पर डालना है। क्योंकि फेसबुक, वाट्सअप,इंस्ट्राग्राम,ट्वीटर का जमाना है।और जमाने के साथ तारतम्य बनाकर रखना भी आवश्यक है। ताकि अपना पहचान किसी न किसी रूप में बने रहे। जिंदा है तो कुछ जिंदादिली भी दिखना ही चाहिए।
मैं डॉ मुरलीधर साहू लिखित कोल्हान अंडर द ब्रिटिश रूल्स नामक किताब में उल्लेखित 19 नवंबर की तिथि का उल्लेख कर रहा हूं। जिसमें सेरेंग्सिया घाटी में अंग्रेजी सेना पर हो विद्रोहियों द्वारा आक्रमण का उल्लेख मिलता है।जिसका नेतृत्व पोटो हो ने किया था।उसमें उल्लेख किया गया है 19 नवम्बर 1837। उसे आधार मानकर आज के तिथि को कोल्हान विजय दिवस के रूप में अपना फेसबुक में अपलोड कर साझा कर रहा हूं।
मेरी धारणा है सेरेंग्सिया घाटी में 19 नवंबर 1837 को पोटो हो के नेतृत्व में हो विद्रोहियों द्वारा अंग्रेजी सेना पर भयंकर आक्रमण करने के बाद थॉमस विलकिंसन विवश हो गए थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार से उस आक्रमण का जांच करने की मांग की थी। साथ ही जांच करने के बाद हो विद्रोहियों को मृत्यु दण्ड और जेल भेजने की सजा देने का अधिकार सौंपने की मांग भी शामिल था। इसे ही अंग्रेजी सरकार के हार की तरह देखा जा सकता है। क्योंकि अंग्रेजों ने कोल्हान पर 1820 में ही अपना पहला कदम रख दिया था। उस समय से हो विद्रोही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे। जिन वीर शहीदों के याद में चाईबासा का शहीद पार्क बना है। उसी स्थान पर पचास हो विद्रोहियों को मेजर रफसेज के आदेश पर अंग्रेजी सेना ने गोली मार दिया था। उस घटना की तिथि 25 मार्च 1820 है। उस समय अंग्रेजी सेना और हो विद्रोहियों के साथ निरंतर भिडंत होते रहा। लेकिन हो विद्रोहियों को मृत्यु दण्ड और जेल भेजने का अतिरिक्त अधिकार सरकार से नहीं मांगा गया था।इसलिए जब थॉमस विलकिंसन की मांग को अंग्रेजी सरकार ने स्वीकार करते हुए उन्हें अधिकार संपन्न बना दिया था, तो वे कोल्हान में पोटो हो सहित अन्य विद्रोहियों को खोजने का अभियान ही चला दिया था। तब थॉमस विलकिंसन अंग्रेजी सेना के साथ पोटो हो को खोजने के लिए कोल्हान के बहुत सारे गांव और पीढ़ में खोज अभियान चलाया था। उसी क्रम में अंग्रजी सेना ने कोल्हान के कई गांव के गांव को जला कर नष्ट कर दिया था। यहां तक कि मवेशी को भी हांक कर ले जाया गया था। खासकर 19 नवंबर 1837 की घटना के बाद लगातार 20 नवंबर से 31 दिसंबर 1837 तक थॉमस विलकिंसन ने अभियान चलाया। थॉमस विलकिंसन को अंग्रेजी सरकार ने 5 दिसंबर 1837 को हो विद्रोहियों को मृत्यु और जेल की सजा सुनाने के लिए अधिकृत कर दिया।जिसका सरकारी लेटर नंबर 1368 था।जिसके आलोक में उन्होंने पोटो हो, नारा हो, बोड़ोय हो, पंडुआ हो, बोड़ो हो को फांसी देने के लिए जगन्नाथपुर में ही 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक कैंप कोर्ट चलाकर सुनवाई पूरा किया था। जिस सुनवाई के बाद जगन्नाथपुर और सेरेंग्सिया में हो विद्रोहियों को फांसी दी गई थी।अंग्रेजी सरकार कोल्हान से प्रति हल आठ अन्ना मालगुजारी प्राप्त करना चाहती थी। और पोटो हो का नारा था कि कोल्हान हमारा भू संपदा है। जिसपर हमारा खूंटकट्टी अधिकार है।हमने कोल्हान पर स्वतंत्रता पूर्वक सदियों से आबाद किया है। कभी किसी को मालगुजारी नहीं दिया गया है। अंग्रेजी सरकार को भी मालगुजारी नहीं देना है। इसी नारा के साथ पोटो हो ने अंग्रेजी सरकार की प्राधिकार को चुनौती दिया था। जिस नारा को तीन पीढ़ और 22 मौजा के ग्रामीणों का समर्थन प्राप्त था। जिसके कारण पोटो हो से अंग्रेजी सरकार परेशान था। कोल्हान में अंग्रेजों को हो विद्रोहियों का सामना लगातार करते रहने के कारण अग्रेजों ने अलग प्रशासनिक व्यवस्था को स्थापित किया। जिसका अनूठा राजनीतिक और प्रशासनिक इतिहास है। लेकिन अब कोल्हान के विलग प्रशासनिक व्यवस्था को कार्यपालिका शक्ति का विस्तार के नाम पर अधिकारी गण उस प्रशासनिक व्यवस्था को शिथिल करने में लगे हुए है। और इसके लिए हम कोल्हान वासी ही जिम्मेदार है।
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सन्नी सिंकु
मुख्य संयोजक
झारखंड पुनरूत्थान अभियान।