रितु:ई गोन्डाई
नागवंशी राजाओं के पहले छोटानागपुर में कई मुंडा राजा थे। लिखित इतिहास नहीं होने के कारण से सभी राजाओं का नाम तो नहीं लिखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर राजा मंदरा मुंडा और राजा पाणि सै का नाम लिया जा सकता है। इन राजाओं के अधीन गांव के मुंडा, पीड़ के मानकी आदि हुआ करते थे। जो पश्चिमी सिंहभूम के कोल्हान-पोड़ाहाट में अभी भी कार्यरत हैं।
मिरगिलिन्डिग गाँव में रितुई गोन्डाई सिंकु नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत धनी था। अपनी ताकत एवं अमीरी के लिए काफी चर्चित था। कहा जाता है कि वह अकेले ही दस आदमियों के साथ मुकाबला करने का दम-खम रखता था। इनकी प्रसिद्धि आस-पास में फैल गई। इसकी जानकारी राजा के कानों तक पड़ी।
प्राचीनकाल में जगन्नाथपुर में जगन्नाथ सिंह नामक राजा थे। उनके पास घोड़े हाथियों का एक बड़ा समूह हुआ करता था। वह जब शिकार के लिए निकलता था, तो हाथी के गले, में सोने का घंटा पहना देता था। एक बार हाथी के गले का घंटा चोरी हो गया है।
जब राजा को घंटा की चोरी का पता चला तो उसने इलाके के सभी मानकी मुण्डा को इत्तला कर दिया और उस घंटा का पता लगाने वाले को इनाम देने की घोषण कर दी। घांसी और सिपाही उस घण्टे की तलाश में चारो ओर निकल पड़े।
एक घर में मुर्गी अण्डा पर बैठी थी। जब मुर्गी बाहर निकलने के लिए उड़ी तो घंटा से टकराने पर घंटा की आवाज गूंज उठी। उस घर का मालिक था रितुई गोन्डाई। रितुई गोन्डाई को चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया और राजा के पास लाया गया। राजा ने हुक्म दिया कि रितुई को ढेंकी में कूट-कूट कर मारा जाये। आदेश जारी हुआ। दस व्यक्तियों ने ढेंकी कूटने के लिए तैयार किया। देखना क्या रितुई एक पैर से ढेंकी को अपने ऊपर गिरने से पहले रोक दिया करता था। बार-बार ऐसा हो रहा था। किन्तु एक बार रितुई ढेंकी रोकना छोड़ दिया। कूट-कूट कर मारा गया। ‘हो’ भाषा में बोला जाता था कि ‘तबेन कियः को’ कूट-कूट कर चिपटा कर दिया गया चूड़ा बना दिया गया।
रितुई का लाश जहाँ पर गाड़ दिया, वहाँ एक तालाब है। अभी भी देखा जा सकता है। इस तालाब को अभी भी गोन्डाई पोखरी नाम से जाना जाता है। ये तालाब जगन्नाथपुर के दक्षिण भाग में स्थित है।
जिस प्रकार से गांव और पीड़ में मुंडा मानकी हुआ करता था, ठीक उसी प्रकार से पहले प्रत्येक गोत्र (किलि) में ‘डंगुवा बिसाय’ दिउरी (मराङ बोंगा में पूजा करने वाला पुजारी) एवं कुछेक गोत्र में गोन्डाई हुआ करता था। अलग-अलग गोत्र और सगोत्र के लोग अलग-अलग जगहों में रहा करते थे। सिंकु, पिंगुवा, बिरूआ एवं कुछ अन्य गोत्र के लोग ‘चितरी-बिलि पि” में रह रहे थे। चितरी बिलि पि में उस समय का गाड़ा हुआ पत्थर जिसमें कोमचोंग दिरि प्रमुख हैं और “ससान दिरि” अभी भी प्रमाण के रूप में मौजूद हैं। “चितरीबिलि पि” से ही सिंकू गोत्र के रितुई गोन्डाई, पिंगुवा गोत्र के जोगला गोन्डाई और बिरूवा गोत्र के कोलाय गोन्डाई सिन्दरी गुयु में बस गये।
इन तीनों गोन्डाईयों में से मैं आप सबों को रितुई गॉन्डाई के बारे में जानकारी देना चाहूंगा।
सिंह राजाओं और होड़ (हो) लोगों के बीच हुए विद्रोह एवं सिंह वंश के राजाओं का कुर्सीनामा देखने से ऐसा लगता है कि रितुई गोन्डाई के समय पोड़ाहाट में सिंह वंश का तेरहवां राजा जगन्नाथ सिंह (द्वितीय) राज करता था। जगन्नाथ राजा का कोल पीड़ों (होड़ दिसुम) पर कब्जा तो नहीं था, लेकिन वे कोल पीड़ों के रास्ते से साधारण आदमी की तरह आना जाना करता था। जगन्नाथ राजा का जगन्नाथपुर में ठहरने के लिए मकान और उनका कचहरी था। राजा के पास हाथी के गले में बांधने के लिए एक घंटी (दमारकोम) था। जब भी वह कहीं निकलता था हाथी के गले में घंटी बांध देता था।
रितुई गोन्डाई की एक बहन थी। राजा ने उससे शादी करने का इच्छा प्रकट किया। इस पर रितुई गोन्डाई ने राजा से कहा, मेरा गोत्र सिंकु है और तुम भी सिंह राजा हो, हम दोनों सगोत्र हैं। इसलिए यह शादी नहीं हो सकती है। इस पर राजा ने रितुई गोन्डाई से कहा -तुम एक साधारण आदमी हो, तुम मेरे बराबर के नहीं हो और न ही तुम मेरा सगोत्र हो सकते हो। क्योंकि मैं एक राजा हूं। ये सब बातें सुनकर रितुई गोन्डाई ने राजा से कहा ठीक है हमदोनों एक दूसरे का धन-दौलत और मवेशी देखेंगे। किसके पास अधिक है। राजा घमंड में आकर बिना सोचे समझे रितुई गोन्डाई की बात को चुनौती दे दी। रितुई गोन्डाई के मवेशियों को किताहातु से जगन्नाथपुर तक कतारबद्ध करने के बाद भी काफी बच गया। राजा ने भी अपने मवेशियों को कतारबद्ध किया तो किताहातु पहुंचने के पहले ही समाप्त हो गया। इससे राजा को बहुत अपमानित होना पड़ा। अपमानित होने के बाद राजा के मन में बदला लेने की भावना उत्पन्न हुई।
राजा के यहां पूती नाम का एक घांसी था, राजा ने उस घांसी को समझा बुझाकर हाथी के गले की घंटी को रितुई गोन्डाई के घर में एक भिखारी के माध्यम से रखवा दिया ताकि रितुई गोन्डाई पर चोरी का इल्जाम लगे। घंटी रखवाने के बाद राजा ने घंटी चोरी होने का ढिंढोरा पिटवाकर घांसी को घंटी तलाशने का आदेश दिया।
घांसी ढोलक लेकर घर-घर भीख मांगते हुए रितुई गोन्डाई के घर पहुंचा। घांसी ने भीख में अंडा मांगा। अंडा लाने जब रितुई गोन्डाई घर में घुसा तो अंडा पर बैठी मुर्गी बाहर निकलने के लिए उड़ी तो घंटी से टकरा गयी जिससे घंटी की आवाज गूंज उठी। घंटी की आवाज सुनकर घांसी ने इस प्रकार से बोलते हुए ढोलक बजाया।
“नअः दो गोमके, नअः दो, रिंगय सिंगय गपा दो गोमके, गपा दो, गोएः डिल-डिल
इस तरह से ढोलक बजाने के बाद घांसी ने राजा को रितुई गोन्डाई के यहां घंटी होने का सूचना दिया। सूचना मिलने के बाद राजा ने रितुई गोन्डाई को जगन्नाथपुर बुलवाया। राजा ने रितुई गोन्डाई से जवाब-तलब करने के बाद उन पर चोरी का इल्जाम लगाते हुए लोहा ढेंकी से कूट कूटकर मारने का हुक्म दिया।
रितुई गोन्डाई ने अपना सच्चाई का परिचय देते हुए राजा से कहा, अगर सही में तुम्हारा घंटी चुराया हूँ तो मुझको एक बार में ही ढेंकी से कूट कर मार दो। रितुई गोन्डाई को ढेंकी से मारने के लिए दस लोगों ने ढेंकी उठायी और बीस लोगों ने रितुई गोन्डाई को लकड़ी (ताड़ा) से दबाकर उनके छाती पर ढेंकी गिराया। सात बार तक अपने हथेली से रोकने के बाद राजा को अभिशाप देते हुए कहा, “जगन्नाथ राजा तुम आज सगोत्र का इज्जत नहीं रख रहे हो, चोरी के इल्जाम में मुझको ढेंकी से कूटकर मार रहे हो, तुम्हारा वंश का विनाश हो जायेगा। जब तक तुम्हारा वंश का विनाश नहीं होगा तब तक मेरी आत्मा तुम्हारे वंश का पीछा करते रहेगा।”
अभिशाप देने के बाद रितुई गोन्डाई ने राजा से कहा, तुम मुझको मारना ही चाहते हो छाती पर ढेंकी गिराकर नहीं मार सकते हो। इस तरह कहने के बाद उसने छाती के बल सोकर पीठ को ऊपर कर दिया। सात बार तक उनके सिर पर ढेंकी गिराकर कूट-कूटकर मार दिया गया। लोग कहते हैं कूटते समय उनका एक आंख छिटककर किताहातु में उनके घर के आंगन में गिर गया।
रितुई गोन्डाई को जिस जगह पर मारा गया वहाँ पर अभी भी एक तालाब है। उस तालाब के बीच में एक टापू (डिपा) है। लोग कहते हैं इसी टापू के अंदर अभी भी ढेंकी मौजूद है। इस तालाब को अभी भी रितुई गोन्डाई तालाब के नाम से जाना जाता है। यह तालाब जगन्नाथपुर के मुख्य सड़क (चाईबासा, किरीबुरू सड़क) से उत्तर कुछ ही दूर में बलियाडीह एवं मोंगरा जाने के सड़क किनारे हैं।
राजा ने रितुई गोन्डाई को मारने के बाद अपने सिपाहियों को रितुई गोन्डाई की पत्नी एवं बहन को किताहातु से पकड़कर लाने का आदेश दिया। आदेश पाकर सिपाहियों ने किताहातु के लिए चल दिया। सिपाहियों को अपने घर की ओर आते देखकर रितुई गोन्डाई की पत्नी और उनकी बहन घर में छिप गये। सिपाहियों ने जब घर में किसी को नहीं पाया तो घर को जला दिया और घर में छिपे हुए रितुई गोन्डाई की पत्नी और उनकी बहन जलकर मर गयी। इस जगह पर बाद में किताहातु के लोगों ने एक बड़ा-सा पत्थार गाड़ दिया जो अभी भी प्रमाण के रूप में मौजूद है।
रितुई गोन्डाई में सच्चाई था, वह सच्चाई के लिए अपना जान दे दिया। वह शहीद हो गया। वह मर कर भी अमर हो गया। अभी भी उनके सच्चाई के कारण उनकी आत्मा का पूजा किया जाता है। जगन्नाथपुर में दशहरा के अवसर पर रितुई गोन्डाई के नाम से एक बकरा का पूजा पहले होने के बाद ही पौड़ी मां (पौड़ी देवी) का पूजा होता है।
जगन्नाथ राजा ईष्यालु और घमंडी था। वह किसी को शक्तिशाली, अथवा अपने से अधिक धनवान देखना नहीं चाहता था। जिस प्रकार दीमक लकड़ी को चट जाता है ठीक उसी प्रकार रितुई गोन्डाई का अभिशाप पोड़ाहाट के सिंह राजाओं के वंश को चट कर गया। अर्थात् सिंह राजाओं के वंश का विनाश सदा के लिए हो गया।
(लेखक-डोंगे सिंकु)
स्रोत – सिंहभूम के शहीद लड़ाका हो