Ho logon ki paramparik swashasan vyastha
Ho logon ki paramparik swashasan vyastha:-झारखण्ड के सिंहभूम (पूर्वी तथा पश्चिमी) सरायकेला-खरसावां जिले में हो आदिवासी लोगों का निवास है। 1981 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या 536524 थी। हो आदिवासियों की पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही सिंहभूम के हो बहुल क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत है तथा वर्तमान में कुछ पदधारियों को सरकारी मान्यता भी प्राप्त है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भी इस व्यवस्था को मान्यता दी गयी थी। ‘हो’ आदिवासियों की पारम्परिक सामाजिक स्वशासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए निम्नलिखित पद है:-
1) मुण्डा, 2) डाकुवा, 3) मानकी, 4) तहसीलदार, 5) तीन मानकी,
6) दिउरी, 7) यात्रा दिउरी।
(1) मुण्डा : मुण्डा गांव का प्रधान होता है। इसे प्रशासनिक, न्यायिक तथा लगान (मालगुजारी) लेने का अधिकार है। वह ग्रामीणों की राय से गांव की परती जमीन में किसी भी ग्रामीण को बन्दोबस्त कर सकता है।कहीमाल
(2) डाकुआ: डाकुआ मुण्डा का अधीनस्थ कर्मचारी होता है। डाकुआ के द्वारा ही मुण्डा गांववालों को किसी बैठकी या मामला के बारे में सूचित करता है।
(3) मानकी: अनेक गांवों के मुण्डाओं के ऊपर एक मानकी होता है। मानकी एक पीड़ का प्रमुख होता है तथा मानकी तहसीलदार के माध्यम से मुण्डाओं द्वारा लिया गया लगान (मालगुजारी) वसूलता है। जब कोई विवाद मुण्डा द्वारा नहीं सुलझाया जा सका तो उसे मुण्डा द्वारा मानकी के पास पेश किया जाता है।
(4) तहसीलदार तहसीलदार मानकी का सहायक होता है। मानकी तहसीलदार के माध्यम से मुण्डाओं से मालगुजारी वसूलता है।
(5) तीन मानकी तीन मानकियों की एक समिति होती है। जब कभी कोई मामला मानकी द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता तो उसे तीन मानकियों की समिति बनाकर उसपर विचार-विमर्श करके सुलझाया जाता है।
(6) दिउरी: दिउरी गांव के सामाजिक तथा धार्मिक पर्व-त्योहारो में पूजा-पाठ करता है। साथ ही धार्मिक अपराध से आरोपित व्यक्ति का दण्ड तय करता है।
(7) यात्रा दिउरी: यात्रा दिउरी गांव के अन्य देवी-देवताओं का पूजा-पाठ करता है। धार्मिक अपराध के मामले में ‘दिउरी के साथ-साथ ‘यात्रा दिउरी को भी विचार-विमर्श में शामिल किया जाता है। परिवार तथा गांव के विवादों में पारम्परिक
कान”
नेतृत्व की भूमिका :
परिवार तथा गांव के विवादों या मामलों में पीड़ित व्यक्ति सबसे पहले गांव के ‘मुण्डा’ को विवाद या मामला की शिकायत करता है और आरोपित व्यक्ति को गांव वालों की सभा बुलाकर फैसला करने का आग्रह करता है।
विवाद के मामलों में जानकारी मिलने के उपरान्त मुण्डा’ ‘डाकुआ’ के द्वारा आरोपित व्यक्ति के साथ-साथ गांव के अन्य गणमान्य व्यक्तियों को बैठक के बारे में जानकारी देता है।
सभा में शिकायतकर्ता, आरोपित पक्ष तथा गवाहों (यदि गवाह हो तो) से बात सुनने के बाद उपस्थित पदधारी तथा पंचगण मामले पर विचार-विमर्श करते हैं। विचार-विमर्श के बाद यदि किसी का अपराध पाया जाता है तो वे उस अपराध 1 का दण्ड निश्चित करते हैं। दण्ड निश्चित होने के बाद मुण्डा द्वारा निर्णय सुना दिया जाता है। दण्ड अपराध के अनुरूप तय किया जाता है।
आपराधिक मामलों में पारम्परिक नेतृत्व की
भूमिका तथा दण्ड:
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हत्या जैसे गम्भीर अपराधों को छोड़कर सभी आपराधिक मामलों को पारम्परिक नेतृत्व द्वारा सुलझाया जाता है।
जब किसी आरोपित व्यक्ति का अपराध सिद्ध हो जाता है तो अपराध के मुताबिक दण्ड तय किया जाता है।
अगर कोई गम्भीर रूप से दोषी पाया जाता है या गम्भीर अपराध करता है तो बड़ा आर्थिक दण्ड दिया जाता है।-
आर्थिक दण्ड में यदि दोषी पाये गये व्यक्ति के पास पर्याप्त रकम नहीं होती है तो उसको समय दिया जाता है।
चूँकि आम तौर पर गांव के लोग सारी स्थितियों से अवगत रहते हैं इसलिए किसी व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखकर ही फैसला करते हैं। गम्भीर अपराध ों में किसी प्रकार की रियायत नहीं दी जाती है। (0)
यौन अत्याचार के मामलों में पारम्परिक नेतृत्व की भूमिका तथा दण्डः
यौन अत्याचार या बलात्कार के मामलों में पीड़ित महिला / लड़की या लड़की के पिता/भाई / अभिभावक सबसे पहले मुण्डा को जानकारी देते हैं और बैठकी बुलाकर सम्बन्धित व्यक्ति को पीड़िता को सौंपने तथा दण्ड देने का आग्रह करते हैं।
बैठकी में सभा द्वारा शिकायतकर्ता की बात सुनने के बाद आरोपित व्यक्ति से इसके बारे में सफाई मांगी जाती है तथा गवाहों से पूछ-ताछ की जाती है।
संबंधित पक्षों को सुनने के बाद आरोपित व्यक्ति के दोषी पाए जाने पर सबसे पहले यदि दोनों के “किली” अलग-अलग हों और दोनों राजी हों तो उस लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा जाता है। तमाम सबूतों से यदि दोषी पाया गया व्यक्ति पीड़ित लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करने से इन्कार करता है तो इस मामला को मानकी के पास पेश किया जाता है।
यदि मानकी से भी इस मामले का फैसला नहीं हो पाता है या अपराध मानते हुए भी दोषी व्यक्ति पीड़ित लड़की को पत्नी स्वीकार नहीं करता है तो इस मामले को तीन मानकियों के पास पेश किया जाता है। आम तौर पर तीन मानकी तक मामला सुलझ जाता है और न सुलझने की दशा में आजकल पक्षकार न्यायालय के शरण में जाने को मजबूर हो जाते हैं।
जमीन-जायदाद के विवादों में पारम्परिक नेतृत्व की भूमिका :
‘हो’ लोगों में जमीन जीविका का मुख्य आधार है। इसलिए जमीन-जायदाद को लेकर भाई-भाई, परिवार-परिवार और गांव-गांव के बीच विवाद उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
जमीन-जायदाद के विवादों को पारम्परिक नेतृत्व द्वारा मुण्डा-मानकी ही निपटाते हैं।
जब कभी भी जमीन-जायदाद को लेकर किसी प्रकार का विवाद खड़ा हो जाता है तब कोई एक पक्ष इस विवाद के बारे में सम्बन्धित गांव के ‘मुण्डा’ को जानकारी देता है। शिकायतकर्ता के अनुसार ‘मुण्डा’ गांव वालों की बैठकी बुलाता है। बैठकी में विवादित मामले पर दोनों पक्षों तथा गवाहों से देखी तथा सुनी हुई बात की जानकारी प्राप्त करने के बाद बैठकी में उपस्थित पदधारी तथा ग्रामीण इस पर विचार-विमर्श करते हैं और जो भी उचित होता है उसके अनुसार ‘मुण्डा’ फैसला देते हैं।
यदि ‘मुण्डा’ के फैसला से कोई एक पक्ष या दोनों सन्तुष्ट नहीं है तो इस विवाद को मानकी’ को अग्रसारित कर दिया जाता है। यदि संबंधित पक्ष के मानकी के फैसले से सन्तुष्ट नहीं होते तो अन्त में मामले को ‘तीन मानकी’ के पास पेश किया जाता है। पूर्व में (कोर्ट-कचहरी के पहले) कोई भी या किसी भी प्रकार का विवाद ‘तीन मानकी’ के समक्ष अंतिम रूप से निपटा दिया जाता था।
लेकिन वर्तमान में ‘मुण्डा से असन्तुष्ट होने पर लोग सीधे पुलिस थाना या कचहरी चले जाते हैं।
ग्राम समुदाय में एकता, सुरक्षा तथा शान्ति बनाये रखने में पारम्परिक नेतृत्व की भूमिका:
‘हो’ लोगों में ग्राम समुदाय की सुरक्षा, एकता तथा शान्ति बनाये रखने की जिम्मेदारी ग्रामीणों के साथ-साथ पारम्परिक नेतृत्व के जिम्मे मुख्य रूप से रहता है। इसलिए ग्रामीण समुदाय को बाहरी खतरों से सुरक्षित रखना, समुदाय में एकता तथा शान्ति बनाये रखना पारम्परिक नेतृत्व का मूल कर्त्तव्य है।
सामाजिक तथा धार्मिक पर्व-त्योहारों में पारम्परिक नेतृत्व की भूमिका :
चूँकि ‘हो’ समाज में मुण्डा तथा अन्य पारम्परिक पदधारी गांव के प्रमुख लोग होते हैं और गांव में शान्ति बहाल रखने की जिम्मेदारी इनके ऊपर रहती है इसलिए हो समाज के सामाजिक तथा धार्मिक सभी पर्व-त्योहारों में पारम्परिक नेतृत्व की मुख्य भूमिका होती है दूसरे शब्दों में ‘हो’ समाज के सामाजिक तथा धार्मिक पर्व-त्योहारों का दिन तय करने का भार पारम्परिक नेतृत्व पर ही है।
मुण्डा-मानकी के बीच रिस्ता
मुण्डा, मानकी के अधीन काम करता है। मानकी के आदेश का पालन करता है। पुराने जमाने में मुण्डा द्वारा वसूला गया खजाना मानकी के यहां जमा किया जाता था परन्तु वर्त्तमान में इसे अब मुण्डा द्वारा सीधे सी०ओ० को जमा किया जाता है।
स्रोत :- बिन्दराय इन्स्टीच्यूट फॉर रिसर्च, स्टडी एण्ड एक्शन द्वारा अनुसंधान में ‘हो समाज के बड़े-बुजुर्गों के मौखिक इतिहास पर आधारित