Sasan Diri ho samaj ka pehchan hai
Sasan Diri ho samaj ka pehchan hai ससन दिरि हमारे हो समाज के अदभुत पुराने ऐतिहासिक धरोहर :- ससन दिरि कोल हो समुदाय की एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। यह केवल एक पत्थर नहीं, बल्कि कोल लोगों की पहचान, आत्मसम्मान, परंपरा और सामूहिक स्मृति का प्रतीक है। यह उन मूलवासी परंपराओं की निशानी है, जो हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीते आए हैं। ससन दिरि का संरक्षण केवल एक भौतिक वस्तु को बचाना नहीं है, बल्कि अपने इतिहास, अस्तित्व और भविष्य की रक्षा करना है। ससन दिरी दरअसल पत्थलगड़ी की एक विशेष परंपरा है, जिसमें मृतकों के सम्मान में पत्थरों को खड़ा किया जाता है। यह परंपरा विशेष रूप से झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और बिहार के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है, जहाँ कोल और उनसे जुड़े अन्य आदिवासी समुदाय निवास करते हैं। पुराने समय में ‘बिड दिरि’ और ‘ससन दिरि’ को लोग काफी दूर के स्थानों से ला कर गाड़ा करते थे। जिसे लाने में गांव / समुदाय के पुरुष लोग ही जाते थे।
इस क्रम में कर्इ तरह के नियम भी मानने पड़ते थे। लोग साथ में विभिन्न प्रकार के औजार और खाने-पीने की वस्तुएं लेकर चलते थे। किसी-किसी बड़े पत्थरों को तो एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले-जाने में महीनों समय भी लग जाते थे।
पत्थरों को लाने के क्रम में शाम हो जाने पर वहीं पर लोग रात के समय बसेरा कर लेते थे। हम अपने गांवों में बड़े-बड़े ‘ससन दिरि’ बहुत से जगहों में देख सकते हैं।
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय के लोगों को उन पत्थरों को लाने में कितने कष्ट उठाने पड़े होंगे।
उन पत्थरों को लाते समय लोगों को ठण्डी, बरसात, आधी-तूफान, भूख-प्यास सभी कुछ झेलना पड़ा होगा। सांप-बिच्छुओं और जंगली जानवरों का डर रहा होगा।
कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी। कहां सोए होंगे? जंगली इलाकों से गुजरते हुए उबड़-खाबड़ रास्तों को लोग किस तरह तय किए होंगे?
ससन दिरि यह प्रमाणित करता है कि कोल लोगों ने उस भूमि पर निवास किया, उसे विकसित किया – जंगलों को साफ करके खेती योग्य भूमि बनाई, घर बनाए और अपने परिवार बसाए। यह एक प्रकार से उस भूमि पर उनके अधिकार, उनकी मेहनत और उनकी उपस्थिति का ऐतिहासिक चिन्ह है। और ससन्-दिरि आदिवासी समाज के कई पीढ़ियों से किसी स्थान में निवास करने का पुख्ता प्रमाण होता है।
कोल समाज में ससन दिरि पर बैठकर सुबह-सुबह बिना भोजन के, स्वच्छ तन-मन से बैठकों का आयोजन होता था। इसमें जनसुनवाई, विवादों का निपटारा और समाज के महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। “ससन्-दिरि” हो’आदिवासियों के लिए पवित्र होता है ।
” ससन्-दिरि की कसम खाकर कोई सच्चा आदिवासी झूठ बोलने की हिम्मत कदापि नहीं कर सकता है। “
यह कोल समाज की लोकतांत्रिक और न्यायसंगत शासन व्यवस्था का प्रमाण है।
पहचान की रक्षा: जैसे झंडा किसी राष्ट्र की पहचान है, वैसे ही ससन दिरि कोल समाज की पहचान है। यदि यह चिह्न मिटा दिया गया, तो हमारी पीढ़ियाँ अपने पूर्वजों और उनकी परंपराओं से कट जाएँगी। यदि ससन दिरि को संरक्षित नहीं किया गया, तो हमारी संस्कृति, हमारी न्याय प्रणाली, हमारी परंपराएँ और समाज के संगठन की सारी धरोहर धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी। इसका अर्थ होगा – कोल समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाना। इतिहास का प्रमाण: ससन दिरि कोल समाज के ऐतिहासिक अस्तित्व और उनके भूमि पर अधिकार का साक्ष्य है। यह भी प्रमाणित करता है कि कोल लोगों ने सभ्यता के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐतिहासिक स्थल मिस्र और बेबिलोनिया की सभ्यता के उत्खनन (इतिहास) में साबित हुआ है कि कब्र को छेड़ने पर अदृश्य शक्ति के प्रभाव से कई लोग मरे गए।
भारतीय संविधान के अनुसार किसी कब्र स्थान को छेड़ना कानूनन निषेध व जुर्म है।