Kolhan Ho Dishum ka parichay
Kolhan Ho Dishum ka parichay @ सन् 1837 ई. को कोल्हान का रुढ़ि प्रथा जमीन एवं यहां के भाषा संस्कृति को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट का स्थापना हुई। जो कि ये समाजिक सरकार यानि गैर न्यायिक सरकार है।
@कोल्हान जर्नल (Journal) एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल – 1840 ई. की किताब अनुसार “हो दिषुम” (Custom of the Singhbhum) को मान्यता प्राप्त है।
@अनुसूचित जिला अधिनियम 1874 की धारा – 3, 5 एवं 5A के मुताबिक कोल्हान गवर्नमेंट को संरक्षित करने वाले सपरिषद भारत सचिव(Secratary of state for india in council) बरकरार है।
@भारत देश आजाद होने के पूर्व भारत सरकार अधिनियम 1935 धारा – 91, 92 के तहत स्वशासित क्षेत्र के रुप में रखा गया।
@भारत आजाद अधिनियम 1947 के धारा 7(c) में कोल्हान गवर्नमेंट क्षेत्र को स्वशासित क्षेत्र के रुप में है।
भारत देश भारतीय संविधान लागू होने के बाद संविधान के अनुच्छेद 372 के तहत कोल्हान गवर्नमेंट क्षेत्र को स्वशासित क्षेत्र यानी कि फाजिल क्षेत्र के रुप में है।
@बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा – 84 के तहत कोल्हान को एक स्वशासित क्षेत्र के रुप में माना गया है यहां मानकी मुन्डा शासन व्यवस्था बरकरार है।
@कोल्हान रि-सेटेलमेंट 1913-18 में हुई पैमाइश के खतियानों से भी प्रमाणित होता है, कि मानकी मुन्डा शासन प्रशासन प्रणाली या ढांचा किस प्रकार है।
@गवर्नर जनरल इन काउंसिल द्वारा बंगाल रेगुलेशन – 13 को 2 दिसंबर 1833 में बना और ब्रिटिश सरकार ने गवर्नर जनरल इन काउंसिल को दिया गया कि भारत के राजा, महाराजा तथा जमींदारों द्वारा लागू दास प्रथा एवं दासता को समाप्त करें और बंगाल रेगुलेशन – 13 द्वारा समाप्त किया गया है।
@सन् 1837 में कोल्हान क्षेत्र के लिए विल्किंसन रुल्स समाजिक प्रथा(Customery Law) को मान्यता प्रदान किया गया।
*अंग्रेजों और कोलों के बीच संधि👇
यह अंतरराष्ट्रीय संधि है जो कि लड़ाका कोलों को पुरे विश्व में स्वतंतत्र रहने के लिए दिया गया है एकारारनामा अनुसार
~ ईस्ट इन्डिया कंपनी के साथ सन्
1820 को हुई |
~ महारानी विक्टोरिया ग्रेट ब्रिटेन
लंदन ने कंपनी के साथ संधि को सन् 1837 में स्वीकृति दे दी | ~ उपरोक्त संधि के अनुसार ब्रिटिश संसद द्वारा बंगाल रेगुलेशन 13 / 1833 बनाया | ~ ~ उपरोक्त संधि एवं रेगुलेशन 13 / 1833 के तहत विलकिंग्सन रूल्स 1833 ई° को थॉमस विलकिंग्सन के द्वारा बनाया गया | और ब्रिटिश संसद के द्वारा पारित होकर हमारे सरदारों, मुंडा, मणाकियों को दिखाया / बताया और साथ ही 913 मौजाओं के रैयतों को दिखाया / बताया इस प्रकार सबों से राय मिलने के बाद वर्तमान में हमारे कोल्हान क्षेत्रों में विल्किंसन रूल्स 1837 को लागू करने के बाद यहां पर 1837 से मुंडा, मणाकियों की बहाली शुरू हुई लेकिन मुंडा, मणाकियों की प्रथा यहां पर पहले से ही मौजूद थी | ~ अब संधि की स्वीकृति पदाधिकारियों की एक अंतरराष्ट्रीय कानून बन गयी है अंतरराष्ट्रीय कानून को खण्डन करने के लिए कोई भी चाहे विदेशी हो या अन्य, नहीं कर सकता है | उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर ही भारतीय संविधान 1950 को हो गया और उसमें कोलों के साथ संधि किया हुआ अधिकारों को भी शामिल किया गया लेकिन आम जनताओं को इसके संबंध में बताया नहीं गया और न संसद में इसके लिए कोई बहस हुई |
हमारे आदिवासी सांसदों ने भी इस संबंध में कोई चर्चा नहीं किया | नतीजा साफ था – सपरिषद भारत सचिव का पद किसी भी व्यक्ति (न हिंदू न मुसलमान न फारसी या ईसाई लोगों में से किसी को नहीं दिया गया ) हिंदू, मुसलमान, इसाई आदि को क्यों इस पद को अंग्रेज ने नहीं दिया है इसका कारण है हमारा और एक संपत्ति (रीति रिवाज) के बारे में पहले ही 1820 ई•में संधि के तहत कानून से ही कोल्हान कोलों के लिए अलग कर चुका था लेकिन महाभारत की विभाजित भूमि के खण्डित नया भारत के संविधान, अनुच्छेद – 363 में भी अंकित करना पड़ा क्योंकि हमारा दैविक विधान अंतरराष्ट्रीय कानून घोषित हो चुका था |